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________________ 42 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना गई है, जबकि अपरब्रह्म की व्याख्या 'इति इति' कहकर की गई है। परब्रह्म को ब्रह्म तथा अपरब्रह्म को ईश्वर कहा गया है। सच तो यह है कि ब्रह्म और अपरब्रह्म दोनों एक ही ब्रह्म के दो पक्ष हैं। ___अभिप्राय यह है कि जो वेदवाद में रत हैं, वे लोग यज्ञादिक से ऊपर आत्मिकज्ञान को नहीं मानते तथा न ही मोक्ष आदि को मानते हैं। इसलिए ये लोग जब तक अध्यात्म ज्ञान से स्थिर बुद्धि नहीं होंगे, उस समय तक इनका कल्याण नहीं होगा। क्योंकि ये वेद तो त्रिगुणरूपी रस्सी हैं, जिससे जीवों को बाँधा जाता है। अभिप्राय यह है कि सम्पूर्ण आचार्यों का तथा ऋषि आदिकों का इस विषय में यही मत था कि वेदों में अध्यात्म विद्या नहीं के बराबर है। जो है वह याज्ञिक आडम्बर अथवा देवताओं की अलंकारिक स्तुतियों से तिरोभूत होकर प्रभावहीन और निःसार-सी दीख पड़ती है। ब्रह्म के बारे में "भारतीय दर्शन की रूपरेखा" पुस्तक में इस प्रकार बताया है। उपनिषदों का ब्रह्म एक और अद्वितीय है। वह द्वैत से शून्य है। उसमें ज्ञाता और ज्ञेय का भेद नहीं है। एक ही सत्य है। नानात्व अविद्या के फलस्वरूप दीखता है। इस प्रकार उपनिषदों के ब्रह्म की व्याख्या एकवादी कही जा सकती है। - ब्रह्म कालातीत है। वह नित्य और शाश्वत है। वह काल के अधीन नहीं है। यद्यपि ब्रह्म कालातीत है, फिर भी वह काल का आधार है। वह अतीत और भविष्य का स्वामी होने के बावजूद त्रिकाल से परे माना गया है। . : .. ब्रह्म कारण से परे है। इसीलिए व परिवर्तनों के अधीन नहीं है। वह अजर, अमर है। परिवर्तन मिथ्या है। वह कारण से शून्य होते हुए भी व्यवहार जगत् का आधार है।" ..। . उपनिषद् में ब्रह्म की निषेधात्मक व्याख्या पर जोर दिया गया है। वृहदारण्यक उपनिषद में 'नेति-नेति' के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है। याज्ञवल्क्य ने कहा है- ब्रह्म न यह और न वह है (नेति-नेति)। हम सिर्फ यह कह सकते हैं कि ब्रह्म क्या नहीं है, हम यह नहीं कह सकते कि वह क्या है। ब्रह्म की व्याख्या नकारात्मक शब्दों में वृहदारण्यक उपनिषद में इस प्रकार की गई है- वह स्थूल नहीं है, सूक्ष्म नहीं है, लघु नहीं है, दीर्घ नहीं है, छायामय नहीं है, अन्धकारमय नहीं है। वह रस तथा गन्ध से विहीन है। वह नेत्र तथा कान से विहीन है। उसमें वाणी नहीं है, श्वास नहीं है। उसमें न अन्दर है और न बाहर।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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