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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना श्रुति विप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चलाः । । तथा त्रैगुण्या विषया वेदाः । । 16 (ख) उपनिषदों में अध्यात्म का स्वरूप उपनिषदकारों ने अध्यात्म को इस प्रकार स्पष्ट किया है 41 अथाऽध्यात्मं य एवायं मुख्यः प्राणः । णिच्चमणयदो दुचेदणा जस्स अथाध्यात्ममिदमेव मूर्तं यदन्यत्प्राणाच्च ।। 4 ।। अथामूर्तं प्राणाश्च ।। 5 ।। अर्थात् स्थूल और सूक्ष्म ( भाव प्राण और द्रव्य प्राण) प्राणों को अध्यात्म कहते हैं। ऐसे ही अन्य प्रमाण दिये जा सकते हैं । अभिप्राय यह है कि अन्तरात्मा के ज्ञान को अध्यात्मविद्या या इसी का नाम परा विद्या भी हैं 1 (1) उपनिषदों में ब्रह्म सम्बन्धी विचार उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्त्व है । वह ही एकमात्र सत्ता है। वह जगत् का सार है। वह जगत् की आत्मा है । 'ब्रह्म शब्द' 'बृ' धातु से निकला है, जिसका अर्थ है बढ़ना या विकसित होना । ब्रह्म को विश्व का कारण माना गया है। इससे विश्व की उत्पत्ति होती है और अन्त में विश्व ब्रह्म में विलीन हो जाता है। इस प्रकार ब्रह्म विश्व का आधार है। एक विशेष उपनिषद् में वरुण का पुत्र भृगु अपने पिता के पास पहुँचकर प्रश्न करता है कि मुझे उस यथार्थ सत्ता के स्वरूप का विवेचन कीजिये, जिसके अन्दर से समस्त विश्व का विकास होता है और फिर जिसके अन्दर समस्त विश्व समा जाता है । इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है-वह जिससे इन सब भूतों की उत्पत्ति हुई और जन्म होने के पश्चात् जिसमें ये सब जीवन धारण करते हैं और वह जिसके अन्दर मृत्यु के समय ये विलीन हो जाते हैं, वही ब्रह्म है । उपनिषदों में ब्रह्म के दो रूप माने गये हैं। वे हैं- (1) परब्रह्म (2) अपरब्रह्म । परब्रह्म असीम, निर्गुण, निर्विशेष, निष्प्रपंच तथा अपरब्रह्म ससीम, सगुण, सविशेष एवं सप्रपंच है । परब्रह्म अमूर्त है, जबकि अपरब्रह्म मूर्त है। परब्रह्म स्थिर है, जबकि अपरब्रह्म अस्थिर है । परब्रह्म निर्गुण होनें के फलस्वरूप उपासना का विषय नहीं है, जबकि अपर ब्रह्म सगुण होने के कारण उपासना का विषय है । परब्रह्म की व्याख्या 'नेति नेति' कहकर की
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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