________________
कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 33 (2) अध्यात्म-विभिन्न दर्शनों की दृष्टि में - ...
. भारतीय दर्शन की जो अनेक धाराएँ तत्तत् कालों में प्रवाहित हुईं तथा जो सांख्य, योग आदि भिन्न-भिन्न नामों से अभिहित होकर अनेकानेक सम्प्रदायों के प्रवर्तन का कारण बनीं; उनमें से प्रत्येक यद्यपि अपने मूल में कोई न कोई ऐसा असामान्य मौलिक तत्त्व या विशिष्ट विचारधारा रखती है, जो अन्य दर्शन के आधारों से उसे पृथक् कर देता है, तथापि इनमें कुछ ऐसी सामान्य विशेषताएँ भी पाई जाती हैं, जो यह इंगित करती हैं कि इनमें से अधिकांश धाराओं का उद्गम स्थल या स्रोत एक ही है और इस प्रकार यह सिद्ध करती है कि भले ही कुछ ऊपरी भेदों के कारण इनमें अनेकता या भिन्नता दृष्टिगोचर हो रही हो, अपने आन्तरिक वैभव की दृष्टि से ये सब एक ही हैं। .
... ... उदाहरण के लिए अति भौतिकवादी चार्वाक दर्शन को छोड़कर भारतीय दर्शन की शेष सभी धाराएँ एक ही विशिष्ट उद्देश्य को लेकर प्रवृत्त हुई दृष्टिगत होती हैं। वह विशिष्ट उद्देश्य है-दुःख का निरोध । जैसा कि डॉ. श्रीकान्त पाण्डेय ने अपनी पुस्तक 'भारतीय दर्शन का इतिहास' में कहा है कि “तापत्रय से झुलसते हुए विश्व को देखकर, भारत की सर्वोच्च मेघा ने, उसकी आत्यन्तिक और ऐकान्तिक निवृत्ति के लिए जिन उपायों का प्रवचन किया, वे ही दर्शन के महनीय नाम से अभिहित हुए। इस प्रकार प्रायः सभी भारतीय दर्शनों के मूल में दुःख का निरोध एक विशिष्ट उद्देश्य के रूप में विद्यमान दिखाई पड़ता है।
प्रायः सभी भारतीय दर्शन, चाहे वह बौद्ध दर्शन हो, सांख्य दर्शन हो या स्वयं वेदान्त हो; सबने अपने-अपने दृष्टिकोण से दुःखमय संसार से निवृत्ति का उपाय ही बताया है। स्वयं भौतिकवादी चार्वाक दर्शन भी मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य सुखभोग घोषित कर प्रकारान्तर से दुःख की निवृत्ति को ही अपना ध्येय मानता प्रतीत होता है। जैसा कि चार्वाक दर्शन का ध्येय है -
यावत् जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।।' - सभी भारतीय दर्शनों की कुछ मूलभूत विशेषताएँ हैं, जिन्हें हम इस . प्रकार विवेचित कर सकते हैं -