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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 13. पूरण पंचासिका, पद-36 14. जैन कवि द्यानतराय का भक्ति काव्य, डॉ. बिजेन्द्र सिंह 15. पूरण पंचासिका, पद-40 16. द्यानतराय कृत द्यानत विलास, पृष्ठ-17, पद-39 17. द्यानत विलास, पृष्ठ-21, पद-48 18. चरचाशतक, पृष्ठ-167, श्लोक-70 19. द्यानतराय कृत चरचाशतक, पृष्ठ-16, पद-8 20. द्रव्यादि चौबीस पच्चीसी, पद-25 21. सुबोध पंचासिका, पद-192 22. द्यानतराय कृत द्यानतविलास, पद-2 23. द्यानतराय कृत देव-शास्त्र-गुरु पूजन
द्यानतराय कृत सम्यक्चारित्र पूजन 25. द्यानतराय कृत छहढाला, दूसरी ढाल-13 26. द्यानतराय कृत धर्म-चाह गीत 27. द्यानतराय कृत उपदेशक शतक, पद-119
द्यानतराय कृत, दान बावनी, 27 29. द्यानतराय कृत, धानत-पद संग्रह 30. द्यानतराय कृत, द्यानत-पद संग्रह, पद 8 31. द्यानतराय कृत, द्यानतविलास, पद-67 32. चार सौ छह जीव समास । 33. द्यानतराय कृत, द्यानतपद संग्रह, पद-83 34. द्यानतराय कृत, दशलक्षण पूजन
(लोभ महादुःखदाई) जिय को लोभ महादुःखदाई, जाकी शोभा बरनी न जाई। लोभ करै मूरख संसारी, छांडै पण्डित शिव अधिकारी ।। तजि घरवास फिरै वन मांहीं, कनक कामिनी छांडै नाहीं।। लोक रिझावन को व्रत लीना, व्रत न होय ठगई सा कीना।। लोभवशात् जीव हत डारै, झूठ बोल चोरी चित धारै। नारि गहै परिगृह विसतारै, पांच पापकर नरक सिघारै।। जोगी जी गृही वनवासी, वैरागी साधू संन्यासी। अजस खान जसकी नहिं रेखा, 'द्यानत' जिनकै लाभ विशेषा।।