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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
कवि द्यानतराय की रचनाओं के अवलोकन से ज्ञात होता है कि कवि महान विद्वान, प्रवचनकार, समाधानकर्ता, भक्त, गुणानुरागी, अध्यात्मरसिक, निरभिमानी, विनम्र, मिष्टभाषी, जिज्ञासु, धैर्यवान, धार्मिक, नैतिक, सदाचारी, विरक्त एवं आत्मोन्मुखी वृत्तिवाले महापुरुष है। उनके व्यक्तित्व में अनेक गुण परिलक्षित होते हैं । वे समस्त गुण उनको सामान्य व्यक्तित्व से उठाकर असामान्य महापुरुष के पद पर प्रतिष्ठित करते हैं । महान व्यक्तित्व को लिए हुए महाकवि द्यानतराय जहाँ एक ओर धार्मिक और नैतिक आदर्शों की बात करते हैं, वहाँ दूसरी ओर सामाजिक बुराइयों और दुर्बलताओं पर भी करारी चोट करते हैं। वे तत्कालीन समाज में व्याप्त जुआ, मांसभक्षण, मद्यपान, वेश्यागमन, परस्त्रीसेवन, चौर्यवृत्ति, आखेट एवं पशु बलि आदि के दोष निरूपित करते हैं तथा समाज में व्याप्त ईर्ष्या, द्वेष, छल, प्रपंच, हिंसा आदि को छोड़ने एवं प्रेम, सरलता अहिंसा आदि को अपनाने पर बल देते हैं । कवि द्यानतराय का जीवन धार्मिक, नैतिक एवं सदाचारयुक्त था । वे आत्महित के प्रति सतत् जागरूक थे। उनमें आध्यात्मिक चेतना उन्नत थी । अपनी आध्यात्मिक समुन्नत चेतना को उन्होंने अपनी रचनाओं में सर्वत्र स्थान दिया है।
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निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि द्यानतरायजी जिनदेव, जिनशास्त्र, जिनगुरु एवं जिनधर्म से प्रभावित थे और इन सबसे प्रभावित होकर ही उन्होंने जिनागम की आम्नाय अनुसार समस्त रचनाएँ की हैं ।
सन्दर्भ सूची
1. द्यानतराय कृत दशलक्षण पूजन
2. द्यानतराय संग्रह, पद- 90
3. पूरण पंचासिका, पद-38 4. पूरण पंचासिका, पद- 32 5. पूरण पंचासिका, पद- 38
6. उपदेश शतक, पद- 40 7. धर्म विलास, प्रशस्ति, पद- 30 8. धर्मविलास प्रशस्ति- 39
9. पूरण पंचासिका, पद- 33
• 10. पूरण पंचासिका, पद- 36
11. अनेकान्त पत्रिका, पृष्ठ 240
12. जैन ग्रन्थ भण्डार, जयपुर, ए. डी. नागौर, पृ. 11