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________________ 186 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना का प्रयोग सार्थक, सुबोध एवं स्वाभाविक रूप में हुआ है। सुगठित शब्द योजना, भाषागत ध्वन्यात्मकता एवं लाक्षणिकता सर्वत्र दर्शनीय है। शब्द समूह-शब्दों के स्रोत के रूप में द्यानतराय कृत पूजनों में तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी आदि सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग हुआ है। तत्सम-महिमा, मंगल, विगत, पूजा, उद्यम, कमल, अनुपम, ध्यान, भक्ति, शक्ति, कथा, शोक, भ्रमर, समुद्र, उपमा, उद्यान, नदी, पर्वत, गिरि, नगर, शास्त्र, निर्ग्रन्थ, शिखर, दर्पण, गृह, ब्रह्मचर्य, तृष्णा आदि। तद्भव-परजाय, सुमिरन, परीशह, उछाव, सांझ, भाखा, जोग, विसन, आचारज, बरनत, अच्छर, थार, मँझार, विरचि, निरखि, थुति, निठुर, दुति, परवीर, सरधा, अगनि आदि। देशी-लाडू, हेठ, पठायौ, पैड, तिसाये, बाढ़, बुहारी, रिस, अरक, सांचा, पुतला, चौखुट आदि। विदेशी-पीर, जरा, गुमान, परहा इत्यादि। (2) चरचा शतक की भाषा-द्यानतराय द्वारा रचित चरचा शतक की भाषा साफ सुथरी और साहित्यिक ब्रजभाषा है। उसमें संस्कृत के शब्दों का प्रयोग इस प्रकार हुआ है - तद्भव शब्द-चरचाशतक में कवि द्यानतराय द्वारा प्रयुक्त तदभव शब्द निम्नलिखित हैं-सरवग्य, दरब, ससि, किरोर च्यारि, आचारज उवझाय, पच्छिम, दच्छिन, जोजन, गुणधान, सुरग फरस, परकार, सूच्छम, कारमान, ग्यान। प्राकृताभास शब्द-चरचा शतक में कतिपय प्राकृताभास शब्दों का प्रयोग हुआ है; जो कि निम्न हैं - छठे, इग्यारै गुणथान, मोख, चक्खू अचक्खू । देशज शब्द-चरचा शतक में प्रादेशिक या क्षेत्रीय शब्दावली के रूप में देशज शब्दों का प्रयोग अनेक स्थानों पर हुआ है। यथा-भोंदू, ढील, डोरी, पतासा, खोरी, खरी आदि। विदेशी शब्द-द्यानतराय ने चरचाशतक में अरबी, फारसी आदि विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया है। जैसे-सलाह, माफिक, खातिर, खलास, इलाज, निशानी, नजर, नाहक आदि । शतक, बावनी एवं अष्टक साहित्य की भाषा कवि द्वारा रचित जकड़ी, आरती, विनती आदि से सम्बन्धित प्रकीर्ण
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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