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________________ 166 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना इन सात तत्त्वों में जीव और अजीव का मेल ही संसार है, आस्रव और बन्ध संसार के हेतु हैं, मोक्ष जीव की शुद्ध अवस्था है तथा संवर और निर्जरा उसके साधन हैं। . जैनदर्शन का सार उक्त सात तत्त्वों में समाहित है। जैनदर्शन में अन्य बातों का ज्ञान भले ही हो या न हो, किन्तु उक्त सात तत्त्वों का श्रद्धान-ज्ञान अनिवार्य बताया गया है। इसके अभाव में भले ही सम्पूर्ण वाङ्मय का ज्ञान क्यों न हो, वह मुक्ति को प्राप्त नहीं कर सकता। .. द्यानतराय ने भी सात तत्त्वों को उपर्युक्त प्रकार से प्रतिपादित किया है। जीव के स्वरूप के विषय में वे लिखते हैं - जो जानै सो जीव है, जो मानै सो जीव। जो देखै सो जीव है, जीवै जीव सदीव ।। .. जीवै जीव सदीव, पीव अनुभौरस प्रानी। . आनन्दकन्द सुबन्द, चंद पूरन सुखदानी।। .. जो जो दीसै सर्व, सर्व छिनभंगुर सो सो। . ... ......... सुख कहि सके न कोह, होइ जाकौं जानै जो।।. .... इस चेतना लक्षण जीव को विभिन्न उपमानों से सम्बोधित करते हुए, वे लिखते हैं - ... ग्यानकूप, · चिद्रूप, भूप सिवरूप अनूपम । . रिद्ध सिद्ध निज वृद्ध, सहज समृद्ध सिद्ध सम।। अमल अचल अविकल्प, अजल्प, अनल्प, सुखाकर। सुद्ध बुद्ध अविरुद्ध, सुगन-गन-मनि-रतनाकर।। . उतपात-नास-ध्रुव साध सत, सत्ता दरब सु एक ही। . द्यानत आनंद अनुभौदसा, बात करन की है नहीं।।5. ..... (2) अजीव तत्त्व का निरूपण-द्यानतरायजी ने भी अजीव तत्त्व को चेतना लक्षण से शून्य स्वीकारा है। जिसमें ज्ञान-दर्शन नहीं है, वही अजीव तत्त्व है। जैसा कि. वे लिखते हैं - भाई! अब मैं ऐसा जाना।। टेक।। ... पुद्गल दरब अचेत भिन्न है, मेरा चेतन बाना।। भाई ।। (3) आम्रव तत्त्व का निरूपण- कर्मों के आने को आस्रव कहा जाता है अर्थात् मोहनीय आदि पूर्वबद्ध कर्म के उदय में उत्पन्न होनेवाले मोह, राग, द्वेषादि विकारीभावों का निमित्त पाकर ज्ञानावरणादि कार्माण-वर्गणाओं
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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