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________________ 150 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना कहि है अयानो वस्तु छीनै, बाँध मार बहुविधि करै। घर नै निकारै तन विदारै, वैर जो न तहाँ धरै।। ते करम परब किये खोटे, सहै क्यों नहिं जीयरा। अति क्रोध-अगनि बुझाय प्रानी, साम्य-जल ले सीयरा।। 24 (2) उत्तम मार्दव धर्म - 'मृदो वः मार्दवम्' मृदुता कोमलता का नाम मार्दव है अर्थात् आत्मा और मान कषाय के भेद को अनुभव करके मान को छोड़ना उसका नाम मार्दव गुण है। मार्दव धर्म में मान कषाय को बुरा बताते हुए कविवर लिखते हैं - मान महाविषरूप, करहि नीच-गति जगत में। कोमल सुधा अनूप, सुख पावै प्रानी सदा।।। उत्तम मार्दव गुन मन माना, मान करन कौ कौन ठिकाना। बस्यो निगोद माहिं तैं आया, दमरी रूंकन भाग बिकाया।। रूंकन बिकाया भाग वशतै, देव इक-इन्द्री भया। उत्तम मुआ चण्डाल हूवा, भूप कीड़ों में गया।। जीतव्य जोवन धन गुमान, कहा करैं जल बुदबुदा। करि विनय बहु गुन बड़े जन की, ज्ञान का पावै उदा।। 25 (3) उत्तम आर्जव धर्म - 'ऋजर्भावः आर्जवम्' ऋजुता अर्थात् सरलता का नाम आर्जव है अर्थात् मन-वचन-काय की कुटिलता का अभाव वह आर्जव है। आर्जव धर्म पाप का खण्डन करनेवाला है तथा सुख उत्पन्न करनेवाला है। द्यानतराय भी उपर्युक्त का समर्थन करते हुए लिखते हैं - कपट न कीजै कोय, चोरन के पुर ना बसै । सरल सुभावी होय ताके घर बहु सम्पदा।। उत्तम आर्जव रीति बखानी, रंचक दगा बहुत दुखदानी। मन में होय सो वचन उचरिये, वचन होय सो तन सौं करिये।। करिये सरल तिहुँ जोग अपने देख निरमल आरसी। मुख करै जैसा लखै तैसा, कपट-प्रीति अँगार-सी।। नहिं लहै लछमी अधिक छल करि, करम-बन्ध विशेषता। भय त्यागि दूध बिलाव पीवै, आपदा नहिं देखता ।। 28 (4) उत्तम शौच धर्म-'शुचेर्भावः शौचम्' शुचिता अर्थात् पवित्रता का नाम शौच है। शौच के साथ लगा 'उत्तम' शब्द सम्यग्दर्शन की सत्ता का
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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