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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 143 अनन्त भवों तक दुःख देने वाला है, इसीलिए शास्त्रों में पाँच इन्द्रिय के विषय-भोगों से विरक्ति की बात कही गयी है; क्योंकि ये पाँच इन्द्रिय के विषय ही जीव को दुःखी करते हैं। अनादिकाल से जीव इन पाँच इन्द्रिय के भोगों को प्राप्त कर स्वयं को सुखी मानता हैं, किन्तु मृगतृष्णा की भाँति इन पाँच इन्द्रिय के विषयों में कहीं भी जीव को सुख नहीं मिलता है। इसी उद्देश्य को लेकर आचार्यों ने संयम की चर्चा में संयम को दो प्रकार से विभाजित किया है - . (1) प्राणी संयम (2) इन्द्रिय संयम छहकाय के जीवों के घात एवं घात के भावों के त्याग को प्राणी संयम कहते हैं और पंचेन्द्रियों तथा मन के विषयों के त्याग को इन्द्रिय संयम कहते हैं। इन्द्रिय सुख के बारे में धर्म के दशलक्षण पुस्तक में डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल ने इस प्रकार विचार व्यक्त किये हैं - "इन्द्रिय सुख और इन्द्रिय ज्ञान में इद्रियाँ निमित्त होती हैं, तथापि इन्द्रिय सुख, सुख है ही नहीं। वह सुखाभास है, सुख-सा प्रतीत होता है, पर वस्तुतः सुख नहीं, दुःख ही है, पापबन्ध का कारण होने से आगामी दुःख का कारण है, इसी प्रकार इन्द्रियाँ रूप-रस-गन्ध-स्पर्श और शब्द की ग्राह्य होने से मात्र जड़ को जानने में ही निमित्त हैं, आत्मा को जानने में वे साक्षात् निमित्त भी नहीं हैं।" विषयों में उलझाने में निमित्त होने से इन्द्रियाँ संयम में बाधक ही हैं, साधक नहीं। पंचेन्द्रियों को जीतने के प्रसंग में भी सामान्यजनों का ध्यान इन्द्रियों के भोगपक्ष की ओर ही जाता है, ज्ञानपक्ष की ओर कोई ध्यान ही नहीं देता। इन्द्रियसुख को त्यागने की बात तो सभी करते हैं, पर इन्द्रियज्ञान हेय है। आत्महित के लिए अर्थात् अतीन्द्रिय सुख के लिए इन्द्रियज्ञान से भी विराम लेना होगा। इन्द्रियाँ आत्मज्ञान में अवरोधक होने से ग्राह्य नहीं हैं, इसीलिए आचार्यों ने इन्द्रिय संयम की आवश्यकता महसूस की। इन्द्रियों को वश में करके ही जीव आत्मोन्मुख हो पाता है। प्रवचनसार में आचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं - अत्थि अमुत्त मुत्तं अदिदिय इंदियं च अत्थेसु । णाणं च तहा सोक्खं जं तेसु परं च तं णेयं ।।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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