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________________ 130 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना (6) शरीर की अनेक अवस्थाएँ होती हैं, बाह्य में अनेक प्रकार के निमित्त आते हैं, किन्तु वे गुरु वहाँ कुछ भी सुख-दुःख नहीं मानते। (7) अपने योग्य बाह्य क्रिया जैसी होती है, वैसी होती है, किन्तु उसे खींच-तानकर नहीं करते। (8) वे अपने उपयोग को बहुत नहीं भ्रमाते, किन्तु उदासीन होकर निश्चल वृत्ति को धारण करते हैं। (७) कदाचित् मन्दराग के उदय से शुभोपयोग भी होता है, जिसके द्वारा वे शुद्धोपयोग के बाह्य साधनों में अनुराग करते हैं परन्तु उस रागभाव को भी हेय जानकर दूर करने की इच्छा करते हैं। (10) तीव्र कषाय के उदय के अभाव से हिंसादिकरूप अशुभोपयोग परिणति का तो अस्तित्व ही उनके नहीं रहा है। (11) सर्व मुनियों को ऐसी अन्तरंग दशा होने से बाह्य दिगम्बर सौम्य मुद्राधारी होते हैं। (12) जो शरीर संस्कारादि विक्रिया से रहित होते हैं। मुनिधर्म का मूल सम्यग्दर्शन "., गुरुओं का माहात्म्य इसलिए है; क्योंकि वे आत्मा के ज्ञानपूर्वक वैराग्य होने से, समस्त परिग्रह छोड़कर अन्तर में शुद्धोपयोग द्वारा तीन कषायों का अभाव होने पर मुनिदशा प्रगट करते हैं। मुनिधर्म शुद्धोपयोगरूप है। उस धर्म का मूल सम्यग्दर्शन है अर्थात् मुनि होनेवाले को सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान तो पहले हो चुका है, इसलिए सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक ही सम्यक्चारित्र दशा होती है। ___ सम्यग्दर्शन के बिना तो चौथा या पाँचवाँ गुणस्थान भी नहीं होता, तब फिर मुनिदशा का छठवाँ–सातवाँ गुणस्थान तो होगा ही कहाँ से? पहले मनि होकर व्यवहार-चारित्र का पालन करो और फिर भगवान के निकट जाकर सम्यग्दर्शन प्राप्त करेंगे-ऐसा जो मानते हैं, उन्हें न तो मुनिदशा की खबर है और न सम्यग्दर्शन की खबर है।131 . __ शुद्धोपयोगरूप गुरुपना सम्यग्दर्शनपूर्वक वैराग्य होने से, वस्त्रादि समस्त परिग्रह छोड़कर अन्तर स्वभाव के अवलम्बन से शुद्धोपयोगी चारित्र प्रगट हुआ, उसका नाम
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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