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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 115 द्यानतराय कहते हैं कि जो उपर्युक्त विधिपूर्वक कर्मों का नाश करके सिद्ध बन जाता है, वह पुनः संसार में नहीं आता है। जैसा कि - परम निरंजन सिद्ध शुद्ध पद, परमानन्द कहाऊँगा। द्यानत यह सम्पत्ति जब पाऊँ, बहुरि न जग में आऊँगा।।93 द्यानतराय के अनुसार बन्धन का मूल कारण क्रोध, मान, लोभ और माया है। इन कुप्रवृत्तियों का कारण अज्ञान है। अज्ञान का नाश ज्ञान से ही सम्भव है। इसलिए जैनदर्शन में मोक्ष के लिये सम्यग्ज्ञान को आवश्यक माना गया है। सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति पथ-प्रदर्शक गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास से ही सम्भव है। सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान को अपनाने से ही मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसके लिए मानव को अपनी वासना, इन्द्रिय और मन को संयत करना परमावश्यक है। इसी को सम्यग्चारित्र कहते हैं। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं कि - सम्यक् दरशन ज्ञान व्रत, शिव-मग-तीनों मयी। पार उतारन यान, द्यानत पूजो व्रत सहित ।। 94 अर्थात् मोक्षानुभूति के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनों को आवश्यक माना गया है। मोक्ष की प्राप्ति न सिर्फ सम्यग्ज्ञान से सम्भव है और न सिर्फ सम्यग्दर्शन से सम्भव है और न ही सिर्फ सम्यक्चारित्र ही मोक्ष के लिए पर्याप्त है। मोक्ष की प्राप्ति तीनों के सम्मिलित सहयोग से ही सम्भव है। आचार्य उमास्वामी के ये कथन इसके प्रमाण हैं - सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः 195 सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र को त्रिरत्न के नाम से सम्बोधित किया जाता है। यही मोक्ष का मार्ग है। भारत के अधिकांश दर्शनों में मोक्ष के लिए इन तीन मार्गों में से किसी एक को आवश्यक माना गया है। कुछ दर्शनों में मोक्ष के लिए सिर्फ सम्यग्ज्ञान को पर्याप्त माना गया है। कुछ अन्य दर्शनों में मोक्ष के लिए सिर्फ सम्यग्दर्शन को ही माना गया है। भारत में कुछ ऐसे भी दर्शन हैं, जहाँ मोक्षमार्ग के रूप में सम्यक्चारित्र को अपनाया गया है। जैनदर्शन की यह खूबी रही है कि उसने तीनों एकांकी मार्गों का समन्वय किया है। इस दृष्टिकोण से जैनमत का मोक्षमार्ग अद्वितीय कहा जा सकता है। साधारणतः त्रिमार्ग की महत्ता को प्रमाणित
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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