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________________ 104 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना गुण अनन्त को कह सके, छियालीस जिनराय। - प्रगट सुगुन गिनती कहूँ, तुम ही होहु सहाय।। . . एक ज्ञान केवल जिन स्वामी, दो आगम अध्यातम नामी। तीन काल विधि परगट जानी, चार अनन्त चतुष्टय ज्ञानी।। पंच परावर्तन परकासी, छहों दरब गुन परजय भासी। सप्तभंग वानी परकाशक, आठों कर्म महारिपु नाशक ।। इसी प्रकार देव-शास्त्र-गुरु पूजन की जयमाला में अरहंत एवं सिद्ध का स्वरूप इस प्रकार लिखा है - चउ कर्म सु वेसठ प्रकृति नाशि, जीते अष्टादश दोषराशि। जे परम सुगुण हैं अनन्त धीर, कहिवत के छयालिस गुण गंभीर ।। शुभ समवशरण शोभा अपार, शत इन्द्र नमत कर सीस धार। . देवाधिदेव अरहन्त देव, वन्दौं मन-वच-तन कर सुसेव।। इस प्रकार द्यानतराय ने अपने काव्य में अरहन्त परमात्मा के अठारह दोषों का वर्णन किया है, जो निम्न हैं - (1) क्षुधा, (2) तृषा, (3) वृद्धपना, (4) आतंक अर्थात् शरीर सम्बन्धी व्याधि, (5) जन्म अर्थात् कर्म के वश से चतुर्गति में उत्पत्ति, (6) अन्तक अर्थात् मृत्यु, (7) भय अर्थात् इहलोक का भय, परलोक भय, मरणभय, वेदनाभय, अरक्षाभय, अगुप्तिभय, अकस्मात्भय-ऐसे सात प्रकार के भय, (8) स्मय अर्थात् गर्व, (७) राग, (10) द्वेष, (11) मोह, (12) शब्द से चिन्ता, (13) रति, (14) निद्रा, (15) विस्मय अर्थात् आश्चर्य, (16) विषाद अर्थात् शोक, (17) स्वेद अर्थात् पसीना, (18) खेद अर्थात् व्याकुलता। . द्यानतराय ने अपने काव्य में परमात्मा को वीतरागी, सर्वज्ञ एवं हितोपदेशी मानकर वर्णन किया है। उन्होंने अरहन्त परमात्मा के स्वरूप में कहा है कि अरहन्त चार घातिकर्मों से रहित हैं। अठारह दोषों से रहित हैं तथा छयालीस गुणों से सहित हैं। समवसरण की शोभा से सहित हैं तथा जिनकी ध्वनि ओंकारमयी है। (2) द्यानतराय के जगत सम्बन्धी विचार – विश्व, लोक, जगत - ये तीनों जगत के पर्याय शब्द हैं। विभिन्न दर्शनों में जगत के विभिन्न स्वरूप बताये गये हैं। जैनदर्शन में छह द्रव्यों के समूह को विश्व कहा गया
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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