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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 93 उसने दर्शन को अपनाया। इसीलिए प्रो. हिरियाना ने कहा है-'पाश्चात्य दर्शन की भाँति भारतीय दर्शन का आरम्भ आश्चर्य एवं उत्सुकता से न होकर जीवन की नैतिक एवं भौतिक बुराइयों के शमन के निमित्त हुआ था। दार्शनिक प्रयत्नों का मूल उद्देश्य था, जीवन के दुःखों का अन्त ढूँढना और तात्त्विक प्रश्नों का प्रादुर्भाव इसी सिलसिले में हुआ। ऊपर के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में ज्ञान की चर्चा ज्ञान के लिए न होकर मोक्षानुभूति के लिए हुई है। अतः भारत में दर्शन का अनुशीलन मोक्ष के लिए ही किया गया है। मोक्ष का अर्थ है-दुःख से निवृत्ति । यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें समस्त दुःखों का अभाव होता है। दुःखाभाव अर्थात् मोक्ष को परम लक्ष्य मानने के फलस्वरूप भारतीय दर्शन को मोक्षदर्शन कहा जाता है। मोक्ष की प्राप्ति आत्मा के द्वारा मानी गयी है। यही कारण है कि चार्वाक को छोड़कर सभी दर्शनों में आत्मा का अनुशीलन हुआ है। आत्मा के स्वरूप की व्याख्या भारतीय दर्शन के अध्यात्मवाद का सबूत है। भारतीय दर्शन को आत्मा की परम महत्ता प्रदान करने के कारण कभी-कभी आत्मविद्या भी कहा जाता है। अतः व्यावहारिकता और आध्यात्मिकता भारतीय दर्शन की विशेषतायें हैं। इस अध्याय में विभिन्न विद्वानों द्वारा आत्मा के विषय में की गई टिप्पणियों, चर्चाओं एवं परिभाषाओं पर अध्ययन किया जायेगा। (1) व्यास के अनुसार आत्मा का स्वरूप महाकवि व्यास ने गीता की रचना की है। उन्होंने गीता में जीवात्मा को ईश्वर का अंश कहा है। भगवान ने कहा है कि 'जीव मेरा ही अंश है'59 इस प्रकार जीवात्मा को गीता में गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। जीवात्मा एक कर्ता है, वह शरीरधारी आत्मा है। मनुष्य जीवात्मा है। गीता में आत्मा को अमर माना गया है। आत्मा की अमरता का उल्लेख करते हुए व्यास ने लिखा है-'यह आत्मा किसी काल में न जन्मता है और न मरता है। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते हैं और इसको आग जला नहीं सकती है, इसको पानी भिगा या गला नहीं सकता और वायु सुखा भी नहीं सकती है। यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, स्थिर, अचल और सनातन अर्थात् चिरन्तन है। चूंकि आत्मा अमर है, इसलिए आत्मा का पुनर्जन्म होता है। अमरता की धारणा पुनर्जन्म की धारणा को बल देती है। जीवात्मा का नया शरीर धारण करना मनुष्य के नये वस्त्र धारण करने के समान है। 2 गीता
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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