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आशीर्वाद
जैन दर्शन में न्याय शास्त्र का अपना विशिष्ट स्थान है। प्रमाण, नय निक्षेप आदि की विवेचना पूर्वक धर्म और दर्शन के गूढ़ प्रमेयों का गूढतम विवेचन न्याय शास्त्रों का प्रमुख प्रतिपाद्य है।
परीक्षामुख न्यायशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। प्रमेयरत्नमाला और प्रमेयकमलमार्तण्ड जैसे महाग्रन्थ इसी के सूत्रों की टीका के रूप में रचे गये हैं। सिद्धान्त ग्रन्थों में जो स्थान तत्त्वार्थसूत्र का है, वही स्थान न्यायशास्त्र में परीक्षामुख का है। इसके सीमित सूत्रों में ही न्यायशास्त्र के समस्त प्रमेयों का परिचय प्राप्त हो जाता है । इस एक ग्रन्थ के अध्ययन मात्र से न्यायशास्त्र में प्रवेश हो जाता है।
क्षुल्लक विवेकानंदसागरजी दृढ़ अध्यवसायी, लगनशील स्वाध्यायी साधक हैं। वे निरन्तर ज्ञान - ध्यान में लीन रहते हुए तत्त्व - जिज्ञासुओं को अध्यापन भी कराते रहते हैं । न्याय और व्याकरण जैसे गूढ़ विषयों में आपकी विशेष गति है। प्रस्तुत कृति क्षुल्लकजी की अध्ययनशीलता का उत्कृष्ट निर्दर्शन
है।
प्रस्तुत कृति के माध्यम से क्षुल्लकजी ने परीक्षामुख के प्रत्येक सूत्रों को संस्कृत टीका के अर्थ के साथ अन्वय और प्रश्नोत्तरी के माध्यम से बड़ी बोधगम्य शैली में एक-एक सूत्र के अर्थ को खोल दिया है। इससे यह कृति न्यायशास्त्र के प्राथमिक अध्येताओं के लिए भी बड़ी सुगम बन पड़ी है। निश्चित ही इस कृति के अध्ययन और अनुशीलन से उपेक्षित होती जा रही न्यायशास्त्र के अध्ययन की वृत्ति को प्रोत्साहन मिलेगा तथा न्यायशास्त्र के प्राथमिक अध्येताओं के लिए यह कृति एक मार्गदर्शिका का कार्य करेगी । क्षुल्लकजी के इस श्रमसाध्य / उपयोगी प्रस्तुति के लिए मेरी ओर से हार्दिक आशीर्वाद ।
मुनि प्रमाणसागर
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