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विषय, पंचम परिच्छेद में प्रमाण का फल, षष्ठ परिच्छेद में प्रमाणाभास
के स्वरूप का निरूपण है। 22. सूत्र किसे कहते हैं ?
अल्पाक्षरमसंदिग्धं, सारवद् गूढनिर्णयम्।
निर्दोष हेतुमत्तथ्यं सूत्रमित्युच्यते बुधैः ।। अर्थ -जिसमें अक्षर थोड़े हों, जो संशय रहित हो, गूढ अर्थ लिए हुए, दोष रहित, हेतु सहित और तथ्यपरक हो, उसे विद्वानों ने सूत्र कहा है।
प्रमाणस्य लक्षणम्
प्रमाण का लक्षण स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम्॥1॥
सूत्रान्वय : स्व = अपने आपके, अपूर्वार्थ = जिसे किसी अन्य प्रमाण से जाना नहीं है। व्यवसायात्मकं = निश्चय करने वाले, ज्ञानं = ज्ञान को, प्रमाणं. = प्रमाण कहते हैं।
सूत्रार्थ : अपने आपके और जिसे किसी अन्य प्रमाण से जाना नहीं है, ऐसे पदार्थ के निश्चय करने वाले ज्ञान को प्रमाण कहते हैं।
संस्कृतार्थ : यत्स्वमन्यपदार्थान्वा विजानाति तत् अथवा यत् स्वस्वरूपस्य पदार्थान्तर स्वरूपस्य वा निर्णयं विदधाति तदेव प्रमाणं (सम्यग्ज्ञानं) प्रोच्यते । तथा चानुमानम् प्रमाणं स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकज्ञानमेव प्रमाणत्वात्, यत्तु स्वापूर्वार्थ व्यवसायात्मक ज्ञानं न भवति तन्न प्रमाणं यथा संशयादिः घटादिश्च, प्रमाणं च विवादापन्नं, तस्मात्स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकज्ञानं प्रमाणम्।
टीकार्थ : जो अपने आपको अथवा अन्य पदार्थों को जानता है वह प्रमाण कहलाता है अथवा जो अपने स्वरूप के और अन्य पदार्थों के स्वरूप के निर्णय को विशेष रूप से धारण करता है, वह ही प्रमाण कहा जाता है।
__इस सूत्र वाक्य में अनुमान प्रयोग के द्वारा प्रमाण की प्रमाणता का निरूपण किया गया है जैसे - स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मक ज्ञान ही प्रमाण है, प्रमाणता होने से। परन्तु जो स्वापूर्वार्थ. व्यवसायात्मक ज्ञान नहीं है वह प्रमाण
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