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अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान बीना एक परिचय स्थापना : 20 फरवरी 1992 को संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के शिष्य परम पूज्य मुनि श्री 108 सरलसागर जी महाराज ससंघ के पुनीत आशीर्वाद एवं सान्निध्य में श्रुत संवर्द्धन की दिशा में संस्थान की संचालित गतिविधियाँ इस प्रकार हैं1. पाण्डुलिपि संग्रहालय : इस संग्रहालय में शास्त्रोद्धार शास्त्र सुरक्षा
अभियान के अन्तर्गत संकलित पाण्डुलिपियों का संग्रहण किया जाता है। अभी तक लगभग 25000 हस्तलिखित ग्रन्थ, 50 ताड़पत्रीय ग्रन्थ, संग्रहालय में हैं। इन ग्रन्थों में अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित, दुर्लभ पाण्डुलिपियां भी हैं । सचित्र एवं सुवर्णलिखित पाण्डुलिपियां भी संस्थान की एक बहुमूल्य धरोहर हैं। शोध ग्रन्थालय : जैन दर्शन से संबंधित मुद्रित प्राचीन - अर्वाचीन ग्रन्थों का संग्रह है। अनेक शोध पत्र-पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती हैं। शोधार्थी, त्यागीवृन्द एवं स्वाध्याय प्रेमियों की ज्ञानाराधना में इस ग्रन्थालय का उपयोग किया जाता है। ग्रन्थालय में लगभग 15000 ग्रन्थों का संग्रह
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है।
अनेकान्त पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र : इस केन्द्र के माध्यम से जीर्ण शीर्ण पाण्डुलिपियों को संरक्षित किया जाता है एवं जो दुर्लभ पाण्डुलिपियां हैं, उनको भी रासायनिक पदार्थों के द्वारा एक दीर्घ जीवन प्रदान किया जाता है। अनेकान्त दर्पण पत्रिका का प्रकाशन : संस्थान की गतिविधियों को जन-जन पहुँचाने के लिये एवं शोध परक आलेखों को प्रचारित करने की
दृष्टि से त्रिमासिक अनेकान्त दर्पण का प्रकाशन किया जाता है। 5. अनेकान्त ग्रन्थमाला : इसके अंतर्गत अनेक बहुमूल्य ग्रन्थों का प्रकाशन
कर जन-जन पहुँचाया जाता है। अभी तक 35 ग्रन्थों का प्रकाशन किया
जा चुका है। 6. पाण्डुलिपि प्रदर्शनी : इस प्रदर्शनी के माध्यम से देश के कोने में जाकर
हस्तलिखित ग्रन्थ सम्पदा के दर्शन कराते हैं।