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मनोगत अनंतधर्मात्मक वस्तु की अनेकांतात्मक व्यवस्था को स्याद्वाद शैली द्वारा प्ररूपित करनेवाली चार अनुयोगमयी जिनवाणी के सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम के अंतर्गत बालबोध गाइड और वीतराग-विज्ञान विवेचिका के बाद तत्त्वज्ञान पाठमाला भाग १ का विवेचन करनेवाली 'तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग १' आपके समक्ष प्रस्तुत है। ___ यद्यपि पूर्ण सावधानी पूर्वक जिनवाणी का आलोडन कर ही यह विवेचन करने का प्रयास किया गया है; तथापि इसमें तात्त्विक, सैद्धान्तिक, न्यायपरक विषयों का समायोजन होने से मुझ अल्पबुद्धि द्वारा स्खलित होने की संभावना से भी सर्वथा इंकार नहीं किया जा सकता है; अतः जिनवाणी परम्परा के संरक्षक, संपोषक, संवर्धक सम्माननीय विद्वद्वंद और परम पूज्य साधु-समूह से परोक्ष प्रार्थना है कि आगम परम्परा-संरक्षक अपनी मनोवृत्ति की उदारता के उपयोग द्वारा मुझे मार्गदर्शन देकर अनुगृहीत करेंगे।
जिनवाणी का क्रमिक अध्ययन करनेवाले इससे लाभान्वित हो अपने तत्त्वज्ञान को निर्मल कर, मोक्षमार्ग प्रशस्त करेंगे - इस पवित्र भावना के साथ प्रस्तुत विवेचिका आपके कर-कमलों में सादर समर्पित है। - कल्पना जैन एम.ए. शास्त्री श्री ऋषभ जयंति (१५ मार्च २००४)
विषयानुक्रमणिका विषय
पृष्ठांक मनोगत पाठ १ सीमंधर पूजन " २ सात तत्त्वों संबंधी भूलें " ३ लक्षण और लक्षणाभास " ४ पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ " ५ सुख क्या है ? " ६ पंचभाव " ७ चार अभाव " ८ पाँच पाण्डव " ९ भावना बत्तीसी । पृष्ठपूर्ति के लिए प्रयुक्त उद्धरण
इंद्रियजनित सुख. पुण्य-पाप का.. समयसार गाथा २३-२५.......... चौदह गुणथानक दशा................. जिन जीवों को दुःख....... नियमसार कलश ५८........ नहि स्वतोऽसति......
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