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ग, यह भाव (ज्ञान, दर्शन और दानादि पाँच लब्धिओं रूप क्षायोपशमिक भाव) औपशमिक आदि मोक्षमार्ग और औदयिक रूप संसारमार्ग - इन दोनों में पाया जाता है।
घ. संसारमार्ग नष्ट करने और मोक्षमार्ग प्रगट करने के लिए यह प्रगट भाव ही साधन है ।
च. स्वयं इस भाव में भी दोनों ही मार्ग गर्भित हैं ।
इत्यादि अनेकानेक कारणों से इसे उन दोनों के मध्य में तीसरे स्थान पर रखा गया है।
4. इसके बाद औदयिक भाव को रखने का कारण - इसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं -
त. क्षायोपशमिक भाव से औदयिक भाव के भेदों की तथा उसमें पाए जानेवाले जीवों की संख्या अधिक है।
थ. औपशमिक आदि मोक्षमार्ग से औदयिक रूप संसारमार्ग विपरीत है । इत्यादि अनेक कारणों से इसे क्षायोपशमिक भाव के बाद चौथे क्रमांक पर रखा गया है ।
5. पारिणामिक भाव को सबसे अन्त में रखने का कारण - इसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं
प. यह पर से पूर्ण निरपेक्ष, अनादि - अनन्त सभी जीवों का सहज स्वभाव होने से इसकी संख्या तथा समय सबसे अधिक है।
फ. अपने-अपने स्वभाव की अपेक्षा यह भाव सभी द्रव्यों में पाया जाता है। ब. इस पारिणामिक/ परम पारिणामिकभाव की आराधना ही सुखमय और विराधना ही दुःखमय जीवन की कारण है ।
भ. पूर्वोक्त चार भावों का आधार यही है ।
इत्यादि अनेक कारणों से पारिणामिक भाव को सबसे अंत में रखा है। इसप्रकार विशिष्ट हेतुओं से इन भावों को इस क्रम से रखा गया है। प्रश्न 18: औपशमिक आदि भावों की तीन-तीन परिभाषाएं क्यों प्राप्त होती हैं ? उत्तरः जैसे माता-पिता दोनों के संयोग से उत्पन्न हुआ पुत्र, अपने नाना के यहाँ माता का तथा दादा के घर पिता का कहलाता है; उसीप्रकार जीव के भाव और कर्म की उदय आदि दशाओं के मध्य पारस्परिक घनिष्ठतम निमित्तनैमित्तिक संबंध होने
पंचभाव / 106