________________
। प्रकाशकीय
पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के माध्यम से अलिंगग्रहण प्रवचन का प्रकाशन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।
प्रातः स्मरणीय आचार्य कुन्दकुन्द प्रणीत समयसार, पंचास्तिकाय नियमसार तथा अष्टपाहुड़ में जो अलिंगग्रहण की गाथा समाहित है वह प्रवचनसार शास्त्र में भी उपलब्ध हैं । इससे यह सिद्ध होता है कि यह गाथा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
इस गाथा में जीव का असाधारण लक्षण बतलाया है । चैतन्य उपवन में क्रीडा करते हुए श्री अमृतचन्द्राचार्य देव ने 'अलिंगग्रहण' शब्द में से अपूर्व भावों से परिपूर्ण २० बोल निकालकर प्रगट किए हैं। उक्त बोल पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी को अत्यन्त प्रिय थे। उन्होंने वीर निर्वाण संवत् २४७७ में अद्भुत एवं अपूर्व प्रवचन किये थे। उक्त प्रवचनों को संकलित कर सर्वप्रथम ब्र. दुलीचन्द जैन ग्रंथमाला सोनगढ़ के माध्यम से पुस्तकाकार रूप प्रकाशित किया गया था। यह पुस्तक दीर्घकाल से अनुपलब्ध थी। पाठकों की निरन्तर मांग को दृष्टिगत रखते हुए ब्र. यशपालजी ने उक्त कृति को आद्योपांत पढ़कर आवश्यक सुधार कर सम्पादित किया है और इसके पुनः प्रकाशन का बीड़ा उठाया है। इस महती कार्य के लिये ब्र. यशपालजी बधाई के पात्र हैं।
पुस्तक की कीमत कम करने के लिए जिन महानुभावों ने अपना आर्थिक सहयोग दिया है, उनकी सूची पृथक् से प्रकाशित की गई हैं। सभी दानदातारों का मैं आभार मानता हूँ। __ आशा है पुस्तक का यह नवीन संस्करण आकर्षक कलेवर में आपका मन मोह लेगा। इसे आकर्षक रूप में प्रकाशित करने का श्रेय प्रकाशन विभाग के प्रभारी श्री अखिल बंसल को जाता है, जिन्होंने आवरण को नयनाभिराम रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। __ आप सभी पाठक अलिंगग्रहण आत्मा को समझकर अपना आत्मकल्याण करें, इसी भावना के साथ।
नेमीचन्द पाटनी
महामंत्री
पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट