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पांचवाँ बोल
२५ में 'हीरा दिखाओ' ऐसा कहने का साहस ही नहीं है; उसीप्रकार अनुमान ज्ञान में पंचपरमेष्ठियों के आत्माओं की परीक्षा करें, ऐसी शक्ति ही नहीं है।
अपना आत्मा शुद्धस्वभावी है ; उसकी श्रद्धा, ज्ञान तथा राग रहित आंशिक स्वसंवेदन जिस जीव में नहीं है, वह जीव मात्र अनुमानज्ञान से पंचपरमेष्ठियों के आत्माओं को नहीं जान सकता। स्वसंवेदनज्ञानरहित मिथ्यादृष्टि भले ही शास्त्र का बहुत बड़ा ज्ञाता हो और उस ज्ञान से मात्र अनुमान करे कि अरहंत ऐसे होने चाहिये अथवा मुनि ऐसे होने चाहिये तो उसका वह सर्व अनुमानज्ञान ज्ञान ही नहीं है। उसके द्वारा पंचपरमेष्ठियों की पहिचान हो सके, ऐसा वह आत्मा ही नहीं है; इसप्रकार तू जान। पंचपरमेष्ठी भगवान स्वसंवेदन ज्ञान से ज्ञात होते हैं। ___ मात्र अनुमान से पांच परमेष्ठी ज्ञात नहीं होते तो वे आत्माएं किस ज्ञान से ज्ञात होने योग्य हैं? तो कहते हैं कि भाई! तुझे पंचपरमेष्ठी को जानना हो तो प्रथम तो अपने में स्वसंवेदन ज्ञान प्रगट कर तो उस ज्ञान से वे ज्ञात होंगे। आत्मा शरीर तथा इन्द्रिय रहित है, राग रहित है, परपदार्थ तथा मन के अवलंबन से रहित है; ऐसे अपने आत्मा की श्रद्धा और ज्ञान कर।
१. इसप्रकार स्वसंवेदन सहित ज्ञान को विस्तृत करके अनुमान कर कि मेरे ज्ञान का आंशिक रूप से प्रत्यक्ष उघाड़ है तो वह अंश बढ़कर एक समय में तीन काल और तीन लोक को जानने योग्य संपूर्ण प्रत्यक्ष ज्ञान हो सकेगा। तुझे ऐसा विश्वास हुआ तो उससे अनुमान कर कि ऐसे संपूर्ण प्रत्यक्ष ज्ञान को प्राप्त अरहंत और सिद्ध होने चाहिये और उनकी सर्वज्ञदशा संपूर्ण राग रहित
और मन के अवलंबन रहित वह सर्वज्ञदशा एक समय में तीन काल और तीन लोक को जाननेरूप होनी चाहिये।
२. तथा मुझे जिसप्रकार आंशिक स्वसंवेदन ज्ञान प्रगट हुआ है, उसीप्रकार का राग रहित शुद्ध, निरालंबी तत्त्व आत्मा है, उसका आश्रय करके अपने में भी स्वसंवेदन ज्ञान आंशिक रूप से प्रगट करनेवाले अन्य साधक जीव भी मेरे सदृश होने चाहिये। जो आंशिकरूप से साधन कर रहे हैं और तत्पश्चात् परिपूर्णदशा प्रगट करेंगे वे साधकजीव आचार्य, उपाध्याय और मनि हैं।