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अलिंगग्रहण प्रवचन की है। लौकिक में कोई तैयार करके लड्डू देवे और जिसको वह खाना भी नहीं आता हो, वह मूर्ख है; उसीप्रकार यहाँ अद्भुत रीति से आत्मा प्रगट हो, ऐसा माल प्रस्तुत किया है तो भी जो जीव उसका विचार करके, श्रद्धा करके, स्वरूपानन्द का भोग न करे, वह मूर्ख है। चौथा प्रवचन
माह वद ५,
सोमवार, दि. २६/२/१९५१ बोल १ : आत्मा अतीन्द्रिय ज्ञानमय है; ऐसा तू जान !
यह आत्मा शरीर आदि से पर है; वह क्या है? शरीर इत्यादि परज्ञेय हैं और आत्मा स्वज्ञेय है। स्वयं को स्वयं द्वारा जानने पर आत्मा स्वरूप से ज्ञात होता है और परपदार्थ पररूप से ज्ञात होते हैं । आत्मा बाह्य लिंग से ज्ञात होने योग्य नहीं है, ऐसा 'तू जान'। यहाँ आचार्य भगवान आदेश करते हैं। यह ज्ञेयरूप आत्मा ज्ञान, दर्शन, चारित्र, आनन्द, अस्तित्व, विभुत्व, प्रभुत्व आदि अनंत-अनंत शक्तियों का पिंड है और अलिंगग्रहण है, ऐसा तू जान'। आत्मा को इन्द्रियों से जानना नहीं होता, इसप्रकार 'तू जान'। आत्मा अतीन्द्रिय है अर्थात् इन्द्रिय तथा मन के अवलम्बन रहित है, अत: इंद्रियों द्वारा नहीं जानता है; ऐसा तू जान।
श्रीगुरु, शिष्य को कहते हैं कि 'तू जान' तो उससे निर्णय होता है कि आत्मा जान सकता है। यदि शिष्य आत्मा को जान सके, ऐसा न होता तो श्री गुरु 'तू जान' ऐसा नहीं कहते।'तू जान' ऐसा कहते ही शिष्य जान सकता है, ऐसा आत्मा है; ऐसा निर्णय होता है। आत्मा में जिनका अभाव है; उन इंद्रियों द्वारा आत्मा किसप्रकार जाने ?
यह आत्मा सच्चिदानंद स्वरूप है। वह इन्द्रियों से नहीं जानता है; ऐसा तू जान। आत्मा में इन्द्रियों का अभाव है। जिस पदार्थ में जिसका अभाव हो, उससे वह काम करे, ऐसा नहीं बन सकता। भगवान आत्मा में इंद्रियों का अभाव है