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१७.
तीसरा बोल
___ तीसरा बोल न लिंगादिन्द्रियगम्या मादग्नेरिव ग्रहणं यस्येतीन्द्रियप्रत्यक्षाविषयत्वस्य। ।
अर्थ :- जैसे धुंएँ से अग्नि का ग्रहण (ज्ञान) होता है, उसीप्रकार लिंग द्वारा, अर्थात् इन्द्रियगम्य (इन्द्रियों से जानने योग्य चिह्न) द्वारा जिसका ग्रहण नहीं होता, वह अलिंगग्रहण है। इसप्रकार 'आत्मा इन्द्रियप्रत्यक्षपूर्वक अनुमान का विषय नहीं है,' ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है। . आत्मा इन्द्रिय प्रत्यक्षपूर्वक अनुमान से ज्ञात हो, ऐसा नहीं है।
धुएँ द्वारा अग्नि का ग्रहण होता है। जहां धुआँ होता है, वहाँ अग्नि होती ही है। उसीप्रकार बाह्य किन्हीं इन्द्रियों से ज्ञात होने योग्य चिह्न द्वारा आत्मा का ज्ञान नहीं होता, ऐसा यह ज्ञेय है। __ शरीर के हिलने-चलने से, वाणी के बोलने से तथा गर्भ के बढ़ने से उन सर्व चिह्नों से क्या यथार्थ में आत्मा पहिचाना जा सकता है? नहीं, इस लक्षण से आत्मा पहिचाना नहीं जा सकता। जिसप्रकार बुखार का नाप थर्मामीटर द्वारा ज्ञात होता है; उसीप्रकार बाह्य किसी चिह्न से आत्मा नहीं पहिचाना जा सकता। यहाँ यह कहा है कि आत्मा के जानने के लिये इन्द्रियों के अनुमान की आवश्यकता नहीं है।
कोई कहे कि आत्मा, आत्मा के ज्ञान द्वारा पहिचाना जाय और पर पदार्थ इन्द्रियों द्वारा पहिचाने जाँय तो वह स्थूल अज्ञान है। कोई भी पदार्थ इन्द्रियों से ज्ञात नहीं होता, ज्ञान से ज्ञात होता है। तथा आत्मा निश्चय से आत्मा द्वारा पहिचाना जाय और व्यवहार से इन्द्रियों द्वारा पहिचाना जाय, ऐसा जो कहता है यह भी भूल है, यह मिथ्या अनेकान्त है । आत्मा आत्मा द्वारा ही पहिचाना जाता है और अन्य किसी चिह्न-इन्द्रियाँ अथवा इन्द्रियों के अनुमान द्वारा नहीं पहिचाना जाता, यही सम्यक् अनेकान्त है और यही धर्म है।
इस तीसरे बोल में अलिंगग्रहण का अर्थ इसप्रकार है - अ-नहीं, लिंग-इन्द्रियों से ज्ञात होने योग्य चिह्न, ग्रहण जानना। अर्थात् आत्मा किसी