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________________ सम्पादकीय जैन जगत की “आँखों के तारे'' विद्वत् मण्डल के चमकते सितारे, प्रकृति प्रदत्त प्रतिभा के धनी, परमश्रद्धेय पू. 'बाबूजी युगलजी' के उज्ज्वल निखरे व्यक्तित्व से सम्पूर्ण जन-मन परिचित है। आर्हत् दर्शन में जिस चिरन्तन सत्य का उद्घाटन हुआ है, उसमें कुशल गोताखोर की भाँति आपने इसकी अतल गहराई में से जिन मणियों को बटोरा, उन्हीं का गहनतम प्रतिपादन “चैतन्य की चहल-पहल" में आया है। इसी संकलन के प्रथम लेख में आपके उद्गार इस रूप में व्यक्त हुए हैं“तत्त्वज्ञान गर्वोन्मत्त भोगमय मृण्मय जीवन को खुली चुनौती है। पापोदय की . विभिषिकायें हों अथवा पुण्योदय की इन्द्रधनुषी छटायें, ज्ञानी की सत्ता का स्पर्श नहीं करतीं।" तात्त्विक लेख श्रृंखला में आपने जैन तत्त्व के गूढ़तम विषय को सुगठित भाषा, प्रश्नोत्तर शैली एवं संक्षिप्त दृष्टांत द्वारा बड़ा सरल व मनोहर रूप देकर प्रस्तुत किया है, स्थान-स्थान पर ध्रुव की धुरी पर घूमता आपका चिन्तन पर्याय की मन्त्र मुग्धाओं को क्षण भर के लिये विलीन कर निज की ओर खींच लाता है। इस कृति में एक नवीन लेख सम्यग्दर्शन और उसका विषय (प्रथम) प्रकाशित कर रहे हैं। इससे पूर्व यह सन् १९६० में प्रकाशित हुआ था। तब एक प्रसंग बना, यह लेख आद. सौगानीजी के हाथ लगा तो उन्होंने इसे पढ़ा और अपने सहधर्मियों से बोले- "इसको पढ़ो, यह है सम्यग्दर्शन का विषय।" इसी के अर्न्तगत् अनेक सुन्दर बिन्दु उभर कर आये हैं-"दृष्टि सम्यक् होने पर ही ज्ञान में सम्यक्त्व उत्पन्न होता है और दृष्टि के सम्यक्त्व के अभाव में ज्ञान उपादेय तत्त्व का विज्ञापन तो करता है, किन्तु ज्ञान में उस शुद्ध तत्त्व की प्रसिद्धि नहीं होने पाती।" "ध्रुवतत्त्व ही सभी शुद्ध पर्यायों का उपास्य देवता है।" आपके प्रखर व निर्मल चिन्तन के ये बोधिकण व्यवहार श्रद्धा एवं सम्यग्दर्शन संबंधिगंतियों को समाप्त करने के लिये सत्य समाधान हैं। IV
SR No.007142
Book TitleChaitanya Ki Chahal Pahal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugal Jain, Nilima Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year2012
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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