________________
तत्त्वज्ञान : एक अनूठी जीवन कला
___13 हैं उन्हें तत्त्वज्ञान का संदेश है कि समस्त भोग संग्रह एवं संग्राहक भाव ठीक ऐसी ही मिथ्या कल्पनायें हैं जैसे एक बालक मधुर विष पीता हुआ हँस रहा हो। - समग्र संयोग-वियोग की संततियों के संबंध में तत्त्वज्ञान का सुनिश्चित अभिमत है कि वे कभी भी आत्मा के पुरुषार्थ से निष्पन्न नहीं हैं। वे सभी दैव-साध्य हैं जिन्हें दृष्टि-शून्य अज्ञानी अपना संपादन मानता है, अतएव उसका संपूर्ण जीवन संयोगों की सुरक्षा में नष्ट हो जाता है। जब तत्त्वज्ञान इनकी सीमा में अपनी व्यवस्था का भयंकर पाप नहीं करता अतएव हल्का-फुल्का समरसी जीवन जीता है।
तत्त्वज्ञान कषाय के शिखरों पर उल्का की तरह गिरता है। उसका उदय होते ही विभिन्न पापाचारों के वे रूप जो युग के साथ बदलते रहते हैं जिनसे व्यक्ति के चरम पतन की समष्टि की व्यापक चेतना भी अभिशप्त एवं आहत होती है, प्रयत्नों के बिना ही अनायास समाप्त होते हैं। हत्यायें, लूटपाट, कालाबाजार एवं रिश्वत जैसे राष्ट्रीय पाप एवं दहेज जैसा सामाजिक कुष्ठ जो चिकित्सा के साथ बढ़ता ही जाता है, तत्त्वज्ञान के उदय से पूर्व ही नि:शेष हो जाते हैं; क्योंकि विशुद्ध मानस-भूमि में ही तत्त्वज्ञान का जन्म होता है। अत: पाप के असंख्य रूपों का प्रहारक तत्त्वज्ञान ही लोकशांति का सुनिश्चित विधाता है।
इस प्रकार सचमुच तत्त्वज्ञान चरम पतन से चरम उत्कर्ष तक ले जाने वाली जीवन की खुली पुस्तक है।