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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
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करता है, अर्थात् त्रिकाली शुद्धद्रव्य को ग्रहण करना, वह शुद्ध द्रव्यार्थिकनय का प्रयोजन है। ऐसे द्रव्यस्वभाव की लगन लगाकर उसमें उपयोग को जोड़ने से अपूर्व आनन्द होता है।
देखो न! संसार के रसिया जीव, विवाह में कैसा उत्साह करते हैं ? यह तो आत्मा के मोक्ष के विवाह की बात है, उसमें स्वभाव
को समझने का कितना उत्साह होना चाहिए! पुत्र का जन्म होता होवे, वहाँ तो मानो क्या-क्या कर दूँ! यह तो चैतन्यस्वभाव की लगन करने की बात है, उसके लिए सम्पूर्ण संसार को भूलकर आत्मा को साधना है। आत्मा को समझने के लिए और अनुभव में लेने के लिये उसकी खुमारी आना चाहिए। जैसे, नशेड़ियों को अफीम इत्यादि की खुमारी चढ़ती है; उसी प्रकार आत्मा का हित करने के लिए उसके अनुभव की ऐसी खुमारी चढ़ती है कि दुनिया का रस उड़ जाता है।
लागी लगन हमारी जिनराज.... लागी लगन हमारी.... काहू के कहे कबहूँ न छूटे, लोकलाज सब डारी, जैसे अमली अमल करत समय लाग रही खुमारी।
लागी लगन हमारी.... जिसे भगवान आत्मा को साधने की लगन लगी, रंग चढ़ा, उसे उसकी खुमारी नहीं उतरती है। दुनिया क्या कहेगी? यह देखने के लिये वह नहीं रुकता है। आनन्दकन्द ध्रुवस्वभाव पर दृष्टि लगाकर उसकी लगन से मोक्ष को साधने के लिये जागृत हुआ, वह अब मोक्ष को लेकर ही रहेगा। स्वभाव में से जो निर्मलपर्याय अवतरित हुई, वह अब वापस नहीं फिरेगी; आगे बढ़कर केवलज्ञान लेकर ही रहेगी।