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________________ (vii) गुरुदेवश्री ने समयसार पाकर क्या नहीं पाया ?.... समयसार पाकर क्या नहीं खोया ?... समयसार पाकर उन्होंने पाया... निज शुद्धात्मा...... समयसार पाकर उन्होंने पाया .... शाश्वत् सुख का स्वानुभूति प्रधान वीतरागीमार्ग.... उन्होंने खोया मिथ्यात्व और मिथ्यात्व से युक्त गुरुपना । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में सौराष्ट्र के कोहिनूर माने जानेवाले गुरुदेव ने मात्र समयसार को पाकर इस महान प्रतिष्ठा को तिलांजलि देकर, तीर्थधाम स्वर्णपुरी में एकाकी निवास किया। उनकी पवित्रता और पुण्य के सातिशययोग ने, आज उन्हें जिनशासन का सजग प्रहरी बना दिया है.... वे लाखों लोगों के पथ-प्रदर्शक हैं; उन्होंने अज्ञान अन्धकार से त्रस्त एवं धर्म के नाम पर मिथ्या क्रियाकाण्ड के आडम्बर में डूबे हुए जगत को, शुद्धात्मानुभूति के सुखद वायुमण्डल में, उन्मुक्त जीवन जीने की कला सिखायी है। ऐसे परम उपकारी जीवनशिल्पी पूज्य गुरुदेव श्री की वाणी के हिन्दी अनुवाद का अवसर पाकर मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है। सभी साधर्मी बन्धुओं से भी भक्तिपूर्वक इस गुरुवाणी के पारायण का अनुरोध करता हूँ। पूज्य गुरुदेव श्री के प्रति भक्ति उत्पन्न कराने में कारणभूत आदरणीय पण्डित कैलाशचन्द जैन, अलीगढ़ के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ। सभी जीव गुरुदेव श्री की अमृत वाणी से लाभान्वित हों - ऐसी भावना है। देवेन्द्रकुमार जैन 28 नवम्बर 2010 (पूज्य गुरुदेव श्री का समाधि-दिवस)
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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