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________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा 59 द्रव्य-पर्याय दोनों को जानता है। द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक-ये दोनों उस भावश्रुत के अंश हैं, अवयव हैं, नय हैं। मोक्षमार्ग या मोक्ष, वह निर्मलपरिणामरूप हैं; वह त्रिकाली द्रव्यरूप नहीं है। द्रव्य को देखनेवाली दृष्टि में पर्याय गौण हो जाती है। पर्याय, पर्यायार्थिकनय का विषय है। ऐसे द्रव्य-पर्यायरूप वस्तु है, यह आगे कहेंगे। 'परस्पर सापेक्ष द्रव्यपर्यायद्वय, वह आत्मपदार्थ है।' बन्ध और मोक्ष के कारण, वह दोनों पर्याय हैं। परद्रव्य तो बन्ध-मोक्ष का कारण नहीं है परन्तु जीव में अशुद्ध और शुद्धपरिणाम, वह बन्ध का और मोक्ष का कारण है । वह परिणाम, पर्यायरूप है; द्रव्यरूप पारिणामिक परमभाव तो बन्ध-मोक्ष का कारण नहीं है। यदि वह स्वयं बन्ध का कारण होवे तो त्रिकाल बन्धन हुआ करेगा, और यदि वह मोक्ष का कारण होवे तो त्रिकाल मोक्ष होगा; अथवा पारिणामिकभाव स्वयं सर्वथा पर्यायरूप हो जाए, तब तो पर्याय के साथ वह भी नष्ट हो जाएगा। यह सब न्याय आगे सरस रीति से समझायेंगे। त्रिकाली द्रव्यस्वभाव में बन्धन नहीं है; इसलिए उसे त्रिकाल मुक्तस्वरूप कहते हैं तथा उसके आश्रय से मोक्षपर्याय प्रगट होती है, इस अपेक्षा से उसे मोक्ष का कारण भी कहा जाता है। अभेदरूप से सम्पूर्ण द्रव्य को मोक्ष का कारण भी कहा जाता है। यद्यपि अभेदरूप से सम्पूर्ण द्रव्य को मोक्ष का कारण कहते हैं परन्तु मोक्ष और मोक्ष की क्रिया तो पर्याय में होती है; इसलिए मोक्ष का कारण भी पर्याय है। बन्ध और मोक्ष, ये दोनों भाव पर्याय के हैं; द्रव्य के नहीं। सम्पूर्ण द्रव्य को बन्ध अथवा मोक्ष नहीं होता। द्रव्य-पर्यायरूप पूर्ण वस्तु का यथार्थ निर्णय करना चाहिए।
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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