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________________ 52 . ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा इस प्रकार चक्षु के दृष्टान्त से आत्मा का ज्ञायकस्वभाव बतलाया है। ऐसे ज्ञायकस्वभावी आत्मा को जानना-अनुभव करना, वह मोक्षमार्ग है। यह समयसार की 320वीं गाथा पर जयसेनाचार्य की टीका पढ़ी जा रही है। जयसेनस्वामी ने 308 से 320 तक की गाथाओं को मोक्ष-अधिकार की चूलिकारूप से वर्णन किया है। उसके प्रारम्भ में उपोद्घात में (अर्थात्, समुदायपातनिका में) ऐसा कहा था कि 'सर्व विशुद्ध-पारिणामिक परमभाव द्वारा परमभाव ग्राहक शुद्ध उपादानभूत शुद्ध द्रव्यार्थिकनय से जीव, कर्तृत्त्व-भोक्तृत्व से तथा बन्ध-मोक्ष के कारणरूप परिणाम से रहित है।' इस प्रकार जीव का अकर्ता और अभोक्तारूप शुद्धज्ञानस्वभाव बतलाया; तथा जीव का ऐसा स्वभाव होने पर भी अवस्था में उसे जो कर्मप्रकृति के साथ बन्धन होता है, वह अज्ञान के कारण है-ऐसा बतलाया। तत्पश्चात शुद्ध निश्चय से कर्तृत्व-भोक्तृत्व के अभावरूप तथा बन्ध-मोक्ष के कारणरूप परिणाम के अभावरूप, शुद्धस्वरूप का जो कथन किया, उसका अन्तिम दो गाथा (319-320) द्वारा उपसंहार किया; इस प्रकार मोक्ष-अधिकार सम्बन्धी चूलिका समाप्त हुई। यह किसकी बात है?- जीव के स्वभाव की बात है। प्रत्येक जीव में ऐसा स्वभाव भरा है, उसे देखने की यह बात है। कैसा है जीव का स्वभाव? शुद्ध द्रव्यार्थिकनय से देखने पर, वह परमपारिणामिक सहजभावरूप है; उसे ही शुद्ध उपादान भी कहते हैं। ऐसे परमभाव को देखने पर वह बन्ध-मोक्ष के परिणाम से भी शून्य है क्योंकि वे परिणाम तो पर्यायार्थिकनय का विषय है; इसलिए
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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