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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
जानता; 'मैं चैतन्य हूँ' इस प्रकार स्वयं अपने चैतन्यस्वभाव को देखे तो वह ज्ञात होवे ऐसा है । जो वस्तु 'है' और जिसका ज्ञान हो सकता है, उसका यह उपदेश है, अर्थात् सत्य प्ररूपणा है । पदार्थ सत् है, उसका यह कथन है और वैसा सत्, ज्ञात हो सकता है। सत् जैसा है, वैसा ज्ञान करने से मुक्तदशा प्रगट होती है, वह व्यक्तिरूप मोक्ष है और शक्तिरूप मोक्ष त्रिकाल द्रव्यरूप पारिणामिकभावरूप है।
इस प्रकार शक्तिरूप और व्यक्तिरूप मोक्ष की बात करके, अब द्रव्य और पर्याय में अथवा पाँच भावों में अक्रियपना और सक्रियपना किस प्रकार है, वह कहते हैं ।
सिद्धान्त में कहा है कि निष्क्रियः शुद्धपारिणामिकः अर्थात् शुद्ध पारिणामिकभाव निष्क्रिय है। निष्क्रिय का क्या अर्थ है ? बन्ध कारणभूत जो क्रिया (अर्थात् रागादि परिणति) उसरूप नहीं है और मोक्ष के कारणभूत जो क्रिया (अर्थात् शुद्धभावना - परिणति) उसरूप भी नहीं है - इस अपेक्षा से पारिणामिकभाव को निष्क्रिय कहा है ।
क्रिया पर्याय की फेरनी - अर्थात् जिसमें उत्पाद-व्ययरूप परिणाम हो, अथवा बन्ध-मोक्ष का कारण हो, उसका नाम क्रिया है । अब, शुद्ध पारिणामिकभाव में तो उत्पाद-व्यय नहीं है अथवा बन्ध - मोक्ष के कारणरूप परिणमन उसमें नहीं है; इसलिए वह निष्क्रिय है। बन्ध का कारण हो, वह अशुद्धक्रिया है, मोक्ष का कारण हो, वह शुद्धक्रिया है; बन्ध के कारणरूप अशुद्धक्रिया, वह औदयिक भाव है; मोक्ष के कारणरूप क्रिया, वह औपशमिकादि तीन भावोंरूप हैं; और पारिणामिकभाव क्रियारहित है ।
मोक्षमार्ग साधना, वह व्यवहार है और अक्रियरूप द्रव्य, वह