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________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा शुद्ध आत्मा, मोक्ष का कारण है और भेद से देखो तो निर्मलपर्याय, मोक्ष का कारण है; अपने द्रव्य और पर्याय के बीच ही बात है। सत् के आश्रय से परिणमित पर्याय भी सत् में समाहित होती है। द्रव्यगुण-पर्याय तीनों सत् हैं; ध्रुवधाम को अवलम्बन करके परिणमति हुई पर्याय, वह मोक्षमार्ग है । अभेदरूप से शुद्धद्रव्य को भी मोक्ष का कारण कहते हैं क्योंकि उसमें एकाकार होकर मोक्ष-पर्याय परिणमित होती है । एक पर्याय में से दूसरी पर्याय नहीं आती; इसलिए पर्याय का कारण पूर्व पर्याय को कहना भी व्यवहार है, भेद है। उस-उस समय के द्रव्य - पर्याय स्वयं से सत् है । 201 अभी पर्याय में कारण- कार्यपना बतलाना है और ध्रुव में कारण- कार्यपना नहीं है, इसलिए उसे अक्रिय कहेंगे। पर्याय और ध्रुव दोनों सत् के अंश हैं । जैसे, ध्रुव सत् है, वैसे पर्याय भी सत् है । द्रव्य - पर्याय दोनों वस्तुस्वरूप है । वस्तु स्वयं द्रव्य - पर्यायरूप है ऐसे दोनों स्वभावरूप अनेकान्तवस्तु को स्याद्वाद से जानने से शास्त्रों का पार पाया जाता है, अर्थात् सम्यग्ज्ञान होता है। आत्मा के पाँच भावों में कौन-से भाव मोक्ष का कारण हैं, उसका यह वर्णन चल रहा है । स्वभाव की भावना से प्रगट हुए औपशमिक आदि तीन भाव, मोक्ष का कारण है और वे तीनों भाव, रागरहित हैं, अर्थात् राग को / औदयिकभाव को मोक्ष कारण में नहीं लेना; इस प्रकार अस्ति नास्तिरूप अनेकान्त से मोक्षमार्ग का स्वरूप स्पष्ट किया है। ऐसे मोक्षमार्ग की शुरुआत चौथे गुणस्थान में हो गयी है। रागरहित उपशम आदि भाव, अर्थात् शुद्ध आत्मा का अवलम्बन चौथे गुणस्थान से शुरु हो जाता है । जितना शुद्धात्मा का • अवलम्बन, उतनी शुद्धता है और उस शुद्धता के ही उपशम आदि
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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