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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
* सम्यक्क्षयोपशमभाव को द्रव्य का अवलम्बन है, राग का अवलम्बन नहीं; _ * शुद्धपरिणतिरूप भावना को द्रव्य का अवलम्बन है, राग का अवलम्बन नहीं;
- इस प्रकार मोक्षमार्ग के समस्त निर्मलभावों में अपने शुद्ध आत्मद्रव्य का ही अवलम्बन है; अन्य किसी का अवलम्बन उसमें नहीं है। अवलम्बन लेना, अर्थात् उसमें अभेद होकर उसे भाना-ध्याना; वही भावना है - ऐसी अभेद भावना, वह मोक्षमार्ग है, उसमे राग का विकल्प नहीं है। ऐसी जो रागरहित भावना है, वह उपशमादि भावोंरूप है। पारिणामिकभाव स्वयं भावनारूप नहीं है परन्तु भावना के विषयरूप है। भावना कहो, शुद्ध चैतन्य परिणाम कहो, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र कहो, उपशम आदि भाव कहो, या मोक्षमार्ग इत्यादि नाम कहो, वे सब एक पर्याय को ही लागू पड़ते हैं। उस पर्याय ने अन्तर्मुख होकर अपने परम स्वभाव का अवलम्बन लिया है, वह शुद्धात्माभिमुख हुई है। जीव की ऐसी दशा होती है,
तब वह मोक्षमार्ग में आया कहलाता है। . वस्तु नित्य-अनित्यस्वरूप है। नय के द्वारा उसका ज्ञान करने
के लिए अथवा कथन करने के लिए उसके किसी धर्म को मुख्य -गौण किया जाता है परन्तु शुद्ध आत्मा को साधने के लिए तो शुद्ध आत्मा का स्वभाव ही सदा मुख्य है, वही निश्चय है; उसी का अवलम्बन है। शुद्ध स्वभाव के ही अवलम्बन से शुद्धता प्रगट होती है; इसलिए वही मुख्य है और रागादि भेदों के अवलम्बन से शुद्धता नहीं होती; इसलिए वह गौण है, व्यवहार है।
मोक्ष का कारण, पर्याय है परन्तु वह पर्याय स्वयं पर्याय के