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________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा ज्ञान - श्रद्धा मिथ्या होते हैं और इसलिए वह जीव, दुःखी होता है । अरे ! आनन्द का धाम चैतन्यवस्तु आत्मा... उसे दुःख कैसे रुचेगा! भाई! आनन्द से भरपूर तेरे ध्रुवभाव में दृष्टि करने से तेरी पर्याय भी आनन्दमय हो जाएगी - उसे भगवान, मोक्ष का कारण कहते हैं। 197 सम्यग्दर्शन शुद्ध पारिणामिक परमभाव को विषय करता है; उसे श्रद्धा में लेकर उसमें अभेद होता है, इसका नाम भावना है। इसी प्रकार सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र भी उसे ही अवलम्बन करके अभेद होता है । इस प्रकार सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्ररूप मोक्षमार्ग का अवलम्बन क्या ? अपना परमस्वभाव ही उसका अवलम्बन है; राग या निमित्त, वह कोई मोक्षमार्ग का अवलम्बन नहीं है। कलियुग में तो आगम और जिनबिम्ब का आधार है, यह बात व्यवहार की है। तीनों काल भगवान आत्मा चैतन्यबिम्ब स्वयं अपने सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र को अवलम्बन देनेवाला है । * सम्यग्दर्शनपर्याय को द्रव्य का अवलम्बन है, राग का नहीं; सम्यग्ज्ञानपर्याय को द्रव्य का अवलम्बन है, राग का अवलम्बन नहीं; * सम्यक्चारित्र को द्रव्य का अवलम्बन है, राग का अवलम्बन नहीं; * क्षायिकभाव को द्रव्य का अवलम्बन है, राग का अवलम्बन नहीं; * उपशमभाव को द्रव्य का अवलम्बन है, राग का अवलम्बन नहीं; *
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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