SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा 143 मोक्ष का कारण नहीं है। पहले आत्मसन्मुख दृष्टि करने से उपशमभाव प्रगट होता है, उसमें आत्मशान्ति की अपूर्व मधुरता का वेदन होता है। उसके साथ का क्षयोपशमभाव भी सम्यक् क्षयोपशमभाव होकर मोक्ष का कारण होता है और तीसरा क्षायिकभाव है - ये तीनों भाव मोक्षमार्ग हैं। इन्हें शुद्धात्माभिमुख परिणाम शुद्धोपयोग अथवा परमेश्वर, परमसमाधि इत्यादि अनेक संज्ञा से पहचाना जाता है। ___ अन्तर्मुख होकर, स्वभाव में उपयोग को जोड़ना./ एकाग्र करना ही योग की सच्ची साधना है, वही मोक्ष के लिए महान यज्ञ है, आठों कर्म उसमें भस्म हो जाते हैं। भगवान आत्मा, चैतन्य महासत्ता, महा महिमावन्त पदार्थ है, उसमें दृष्टि और एकाग्रता करनेवाला महायोगी है। परमतत्त्व में अन्तर्मुखदशा ही परमयोग है। इसके अतिरिक्त बाहर के योग (राग में एकतारूप जुड़ान), वह तो हठयोग और मिथ्यायोग हैं। अपूर्व योगविद्या तो उसे कहते हैं कि जिस विद्या के द्वारा पर से भिन्नता जानकर, आत्मस्वरूप में एकाग्रता होवे। सा विद्या या विमुक्तये – यही विद्या, मोक्ष का कारण है। अध्यात्मभाषा से उसे शुद्धोपयोग, परमात्मभावना इत्यादि नाम कहे जाते हैं और आगमभाषा से उसे औपशमिक आदि तीन भाव कहे जाते हैं। जिसमें आत्मासहित जगत के पदार्थों का, उनके गुण-पर्यायों का स्पष्टीकरण होता है, उसे आगम कहते हैं, . और जिसमें शुद्ध आत्मा की कथनी मुख्य होती है, आत्माश्रित कथन होता है, उसे अध्यात्म कहा जाता है। देखो, यह भगवान से साक्षात्कार करने की विधि! शुद्धनयरूपी निर्मलपर्याय द्वारा आत्मा अपने पूर्णानन्दस्वभावी भगवान का
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy