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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
भी सूक्ष्म ही होगी और ज्ञान में भी सूक्ष्म समझने की ताकत है। भले सूक्ष्म है परन्तु कहीं यह समझ में न आवे - ऐसा नहीं है। ___जीव की अशुद्धता में अनेक प्रकार हैं; वैसे ही सामने निमित्तरूप कर्मप्रकृति में भी अनेक प्रकार हैं। मोहादि कर्मों में कितनी ही प्रकृति देशघाति है और कितनी ही सर्वघाति है। जिसके उदय में गुण का सर्वथा घात हो, अर्थात् उसकी निर्मलता प्रगट न हो, उसे सर्वघाति कहा जाता है; जैसे कि मिथ्यात्व-मोह, केवलज्ञानावरण इत्यादि सर्वघाति हैं और जिनके उदय से गुण का सर्वथा घात न हो, परन्तु उसकी शुद्धता में जरा दोष लगे – पूर्ण शुद्धता होने न दे, परन्तु एक अंश का घात करे, उसे देशघाति कहते हैं; जैसे कि सम्यक्त्व-मोहनीयप्रकृति, वह देशघाति है। उसका उदय होने पर भी जीव को सम्यग्दर्शन तो होता है परन्तु उसमें जरा दोष लगता है, अर्थात् सर्वथा शुद्धतारूप क्षायिकसम्यक्त्व वहाँ नहीं होता, परन्तु क्षायोपशमिकसम्यक्त्व होता है। गुण का निर्मल अंश तो प्रगट हुआ, परन्तु उसकी पूर्ण शुद्धता न हुई, अर्थात् एक अंश का घात हुआ; इस कारण उस प्रकृति को निमित्तरूप से 'देशघाति' कही है। स्वसन्मुख होकर गुण के साथ जो शुद्धि प्रगट हुई है, उसे कोई कर्म नहीं ढंकता, उसमें तो कर्म के उपशम आदि निमित्त हैं। शुद्धभाव प्रगट हुआ, वह तो कर्म का नाशक और मोक्ष का साधक है। वह भाव, शुद्धात्मा की भावना से प्रगट होता है।
देखो भाई! आत्मा का जो परमशुद्धस्वरूप है, उसकी अलौकिक महिमा है। लोग तो बाहर की महिमा में अटक गये हैं - राग में अटक गये हैं परन्तु अन्दर चैतन्यवस्तु की अचिन्त्य महिमा जो स्वानुभवगोचर है, उसका उन्हें पता नहीं है।