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________________ 128 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा % परमआह्लादरूप एक सुख जिसका लक्षण है - ऐसे ध्यानरूप निश्चयमोक्षमार्ग के वाचक अन्य भी पर्यायवाची नाम परमात्मतत्त्व के ज्ञानियों द्वारा जानने योग्य हैं। (वृहद् द्रव्यसंग्रह, गाथा 56 टीका) ज्ञानियों ने अनेक प्रकार के कथन से वस्तुस्वरूप समझाया है। किसी भी प्रकार से वस्तुस्वरूप समझ ले, उसमें सब आ जाता है। तिर्यञ्च आदिक को भले ही इतने सब नाम या भाषा न आत्रे, परन्तु उपयोग को अन्तर्मुख करके अतीन्द्रिय आत्मा को अनुभव में ले लिया है, उसमें इन सब नामों का वाच्यभाव समाहित हो गया है। भाषा के शब्दों में तो कहीं वाच्य नहीं है, उनका वाच्य तो ज्ञाती के अनुभव में है। जैसे, 'आत्मा' यह तो ढाई अक्षर हुए, परनु उनका वाच्य तो अनन्त गुण के भावों से भरा हुआ है। इस।: प्रकार धर्मी के अन्तर की दशा को अलग-अलग चाहे जिन नामों से बतलाओ, परन्तु उनका वाच्यरूप भाव तो समस्त ज्ञानियों के अन्तर में समान है। ___ अहो! यह तो आत्मा के निजघर की कोई अद्भुत बातें हैं। मानो इस बाहर की दुनिया से किसी दूसरी ही अन्तर की दुनिया में सन्त ले जाते हैं... और आत्मा के दिव्यस्वरूप का दर्शन कराते हैं.... विराटस्वरूप दिखलाते हैं। साढ़े तीन हाथ की इस चैतन्य - गुफा में तीन लोक का नाथ चैतन्य परमेश्वर विराजमान हैं। यह उसका साक्षात्कार करने की बात है। जीवतत्त्व त्रिकाली रहनेवाला, उसकी अधर्मदशा में क्या था और धर्मदशा होने पर क्या होता है? ये दोनों बात यहाँ समझायी हैं। जीव, अशुद्धतारूप परिणमता था, उसमें मोहादि कर्म निमित्त थे और अब शुद्धात्मसन्मुख होकर मोक्षमार्ग प्रगट करने की बात नास हा
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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