SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा सामान्यविवरणं कृतं। पुनरपि गाथाचतुष्टयेन शुद्धस्यापि यत्प्रकृतिभिर्बंधो भवति तदज्ञानस्य माहात्म्यमित्यज्ञानसामर्थ्य -कथनरूपेण विशेषविवरणं कृतं। पुनश्च गाथाचतुष्टयेन जीवस्याभोक्तृत्वगुणव्याख्यान-मुख्यत्वेन व्याख्यानं कृतं । तदनन्तरं शुद्धनिश्चयेन तस्यैव कर्तृत्वबंधमोक्षादिककारणपरिणामवर्जनरूपस्य द्वादश-गाथाव्याख्यानस्योपसंहाररूपेण गाथाद्वयं गतं॥इति समयसारव्याख्यायां शुद्धात्मानुभूतिलक्षणायां तात्पर्यवृत्तौ मोक्षाधिकार-संबंधिनी चूलिका समाप्ता। अथवा द्वितीय-व्याख्यानेनात्र मोक्षाधिकार समाप्तः। किं च विशेषः - औपशमिकादिपंचभावानां मध्ये केन चार गाथाओं द्वारा शुद्ध को भी जो प्रकृति के साथ बन्ध होता है, वह अज्ञान का माहात्म्य है' - ऐसा अज्ञान का सामर्थ्य कहनेरूप विशेष विवरण किया गया। तत्पश्चात् चार गाथाओं द्वारा जीव का अभोक्तृत्वगुण के व्याख्यान की मुख्यता से व्याख्यान किया गया। तत्पश्चात् दो गाथाएँ कही गईं, जिनके द्वारा पहले बारह गाथाओं में शुद्धनिश्चय से कर्तृत्व-भोक्तृत्व के अभावरूप तथा बन्ध-मोक्ष के कारण एवं परिणाम के अभावरूप जो व्याख्यान किया गया था, उसी का उपसंहार किया गया। इस प्रकार समयसार की शुद्धात्मानुभूतिलक्षण तात्पर्यवृत्ति' नाम की टीका में मोक्षाधिकार सम्बन्धी चूलिका समाप्त हुई अथवा अन्य प्रकार से व्याख्यान करने पर, यहाँ मोक्षाधिकार समाप्त हुआ। फिर विशेष कहा जाता है -
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy