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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
पाँच भावों में से तीन भाव, मोक्ष का कारण होते हैं, यह बात यहाँ समझाते हैं।
एक द्रव्यरूप त्रिकाल धर्म और दूसरा पर्यायरूप वर्तमान धर्म है। त्रिकाल धर्म, द्रव्यरूप है, वह तो सदा है ही; इसलिए उसमें कुछ करने का नहीं है। पर्यायरूप वर्तमान धर्म जो कि मोक्ष का कारण है, वह नया प्रगट होता है - ऐसे द्रव्यधर्म और पर्यायधर्म, दोनोंरूप आत्मपदार्थ है। आत्मवस्तु ऐसे अनेकान्तस्वरूप है। ऐसे आत्मा को पहचान बिना धर्म नहीं होता है।
आत्मा, स्वयं चैतन्यसत्ता है परन्तु 'मैं हूँ' - ऐसा निर्णय कब हुआ? जब अपनी अवस्था अन्दर स्वभावसन्मुख ढली, तब पता पड़ा कि मैं यह चैतन्यसत्ता हूँ। दशा स्वयं दशावान में ढली, तब अपने अस्तित्व का निर्णय हुआ कि मैं सत्स्वरूप आत्मा अनादि --अनन्त परमभावरूप हूँ। ऐसे परमभाव को ग्रहण करनेवाली पर्याय, वह क्षायोपशमादिक तीन भावरूप है, उसे 'परमभाव' नहीं कहते हैं। पर्याय को अन्तर्मुख करके परमभावरूप आत्मा के अनुभव के बिना, मोक्षमार्ग प्रगट नहीं होता और जन्म-मरण का अन्त नहीं आता।
जिसे संसार के दुःख से छूटना हो, उसे ऐसा स्वरूप समझना चाहिए। न समझ में आये, इसलिए उद्यम छोड़ दे - ऐसा नहीं चलता, क्योंकि आत्मा की शान्ति या सुख का इसके अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता नहीं है। शीघ्र न समझ में आये तो अधिक पात्रता करके अधिक उद्यम करना। अपनी वस्तु अपने को समझ में आने योग्य है। भाई! यह तो मोक्ष के दरवाजे में प्रवेश करके मोक्ष का अनुभव करने के लिए उत्कृष्ट बात है। यह कोई लौकिक बात