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क्रिया के तीन प्रकार
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(1) जड़ की क्रिया, जो कि जीव से भिन्न है । (2) जीव की विकारी क्रिया, जो कि संसार का कारण है (3) जीव की अविकारी क्रिया, जो कि मोक्ष का कारण है। जड़ की क्रिया
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शरीर जड़ है, इसलिए उसकी प्रत्येक क्रिया, जड़ की क्रिया है । शरीर का हिलना-डुलना या स्थिर रहना जड़ की क्रिया है, उसके कर्ता जड़ परमाणु हैं; आत्मा उसका कर्ता नहीं है। जड़ की क्रिया के साथ बन्ध अथवा मोक्ष का सम्बन्ध नहीं है । शरीर की हलन-चलनरूप अवस्था में अथवा स्थिरतारूप अवस्था में बन्ध या मोक्ष की क्रिया नहीं है । तात्पर्य यह है कि शरीर की किसी भी क्रिया से आत्मा को बन्ध या मोक्ष, लाभ या हानि, अथवा सुख-दुःख नहीं होता क्योंकि शरीर की क्रिया जड़ की क्रिया है ।
पहले शरीर की अवस्था घर में रहने की होती है और उसमें हलन चलन होता है, फिर शरीर की अवस्था बदलकर वहाँ से धर्मस्थान में जाकर स्थिर होने की होती है। इस परिवर्तन से अज्ञानी जीव धर्म मानता है परन्तु जड़ की क्रिया बदल जाने से आत्मा को धर्म, पुण्य या पाप नहीं होता। शरीर की भाँति ही रुपया, पैसा, वस्त्र, आहारादि का संयोग-वियोग भी जड़ की क्रिया है, उससे धर्म अथवा पुण्य-पाप नहीं होता। इनमें से किसी भी क्रिया का कर्ता आत्मा नहीं है। जड़ की क्रिया का कर्ता जड़ है । विकारी क्रिया अर्थात् संसार की क्रिया
जीव की पर्याय में जो राग-द्वेष अज्ञानरूप भाव होते हैं, वह जीव की विकारी क्रिया है, इस क्रिया को बन्ध की क्रिया कहते हैं ।