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________________ प्रकरण -4 क्रिया के तीन प्रकार क्रिया की सामान्य परिभाषा और उसकी स्वतन्त्रता वस्तु की पर्याय का परिवर्तन होना, वह क्रिया है। प्रत्येक द्रव्य की पर्याय प्रतिसमय बदलती रहती है। प्रत्येक द्रव्य का परिणमन ही उसकी क्रिया है। प्रत्येक द्रव्य की पर्याय अपने में ही होती है, एक द्रव्य की पर्याय दूसरे द्रव्य में नहीं होती; इसलिए एक द्रव्य की क्रिया भी दूसरे द्रव्य में नहीं होती तथा एक द्रव्य की क्रिया दूसरा द्रव्य नहीं करता। क्रिया के तीन प्रकार इस संसार में जड़ और चेतन दो प्रकार के द्रव्य हैं। द्रव्य की पर्याय ही क्रिया है, इसलिए क्रिया भी जड़ और चेतन दो प्रकार की है। जड़द्रव्य की अवस्था, जड़ की क्रिया है और चेतनद्रव्य की अर्थात् जीव की अवस्था, चेतन की क्रिया है अर्थात् जीव की क्रिया है। .जीव की क्रिया दो प्रकार की है - (1) रागादिभावरूप विकारी क्रिया और (2) रागादिभावरहित सम्यग्दर्शन-ज्ञान -चारित्ररूप अविकारी क्रिया। विकारी क्रिया बन्ध का कारण है, इसलिए उसे बन्ध की क्रिया भी कहते हैं और अविकारी क्रिया मोक्ष का कारण है, इसलिए उसे मोक्ष की क्रिया भी कहते हैं। इस प्रकार क्रियाएँ तीन प्रकार की होती हैं -
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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