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________________ वस्तुविज्ञानसार ऐसा हो कि वाणी बोली जानेवाली थी, इसलिए राग हुआ तो वाणी के परमाणु कर्ता और राग उसका कर्म कहलायेगा, परन्तु राग तो जीव की पर्याय है और वाणी परमाणु की पर्याय है, उनमें कर्ता-कर्म भाव कैसे होगा? यदि जीव की पर्याय की योग्यता हो तो राग होता है और वाणी उन परमाणुओं का उस समय का सहज परिणाम है। जब परमाणु स्वतन्त्रतया वाणीरूप परिणमित होते हैं, तब जीव के राग हो तो उसे निमित्त कहा जाता है। केवली भगवान के वाणी होती है, तथापि राग नहीं होता। (इसलिए राग वाणी का नियमरूप निमित्त भी नहीं है ।) 54 शरीर का गमन और जीव की इच्छा - दोनों की स्वतन्त्रता जीवं इच्छा करता है, इसलिए शरीर चलता है - यह बात नहीं है और शरीर चलता है, इसलिए जीव को इच्छा होती है - ऐसा भी नहीं है। जब शरीर के परमाणुओं में क्रियावतीशक्ति की योग्यता से गति होती है, तब किसी जीव के अपनी अवस्था की योग्यता से इच्छा होती है और किसी के नहीं भी होती है । केवली के शरीर की गति होने पर भी इच्छा नहीं होती। अत: दोनों स्वतन्त्र हैं । विकल्प और ध्यान - दोनों की स्वतन्त्रता चैतन्य के ध्यान का विकल्प उठता है, वह राग है । उस विकल्परूपी निमित्त के कारण ध्यान जमता हो- ऐसी बात नहीं है, किन्तु जहाँ ध्यान जमता हो, वहाँ पहले विकल्प होता है । विकल्प के कारण ध्यान नहीं होता और ध्यान के कारण विकल्प नहीं होता । जिस पर्याय में विकल्प था, वह उस पर्याय की स्वतन्त्र योग्यता से था और जिस पर्याय में ध्यान जमा है, वह उस पर्याय की स्वतन्त्र योग्यता से जमा है ।
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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