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उपादान-निमित्त की स्वतन्त्रता
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-नाराचसंहननरूप होना पड़ा। जहाँ जीव की पर्याय में केवलज्ञान के पुरुषार्थ की जागृति होती है, वहाँ शरीर के परमाणुओं में वज्रवृषभ -नाराचसंहननरूप अवस्था उनकी ही योग्यता से होती है; दोनों की योग्यताएँ स्वतन्त्र हैं, किसी के कारण कोई नहीं है।
जब जीव के केवलज्ञान प्राप्त करने की योग्यता होती है, तब शरीर के परमाणुओं में वज्रवृषभनाराचसंहननरूप अवस्था की ही योग्यता होती है - ऐसा सुमेल स्वभाव से ही है, कोई एक दूसरे के कारण नहीं है।
पेट्रोल और मोटर - दोनों की स्वतन्त्रता कोई मोटर चली जा रही हो और उसकी पेट्रोल की टङ्की के फूट जाने से उसमें से पेट्रोल निकल जाए और चलती हुई मोटर रुक जाए, तो वहाँ यह नहीं समझना चाहिए कि पेट्रोल निकल गया है, इसलिए मोटर रुक गयी है। जिस समय मोटर के परमाणुओं में गतिरूप अवस्था की योग्यता होती है, उस समय वह गति करती है। मोटर का प्रत्येक परमाणु अपनी स्वतन्त्र क्रियावतीशक्ति की योग्यता से गमन करता है; इसलिए यह बात ठीक नहीं है कि पेट्रोल निकल गया, इसलिए मोटर की गति रुक गई। जिस क्षेत्र में जिस समय उसके रुकने की योग्यता थी, उसी क्षेत्र में और उसी समय मोटर रुकी है।
जीव, वाणी का कर्ता नहीं जीव को बोलने का विकल्प-राग हुआ, इसलिए वाणी बोली गयी - ऐसा नहीं है और वाणी बोली जानेवाली थी, इसलिए विकल्प हुआ - ऐसा भी नहीं है। यदि जीव के राग के कारण वाणी बोली . जाती हो तो राग कर्ता और वाणी उसका कर्म कहलायेगा और यदि