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________________ उपादान - निमित्त की स्वतन्त्रता इसलिए गुरु आ गये, तो श्रद्धा करना कारण और गुरु का आना उसका कार्य कहलायेगा; इस प्रकार दो द्रव्यों में कर्ता-कर्मपना हो जाएगा, जो कि सिद्धान्त विरुद्ध है । जो श्रद्धा हुई, वह श्रद्धा की पर्याय के कारण हुई और जो गुरु आये, वह गुरु की पर्याय के कारण से आये । इस प्रकार दोनों स्वतन्त्र हैं । शास्त्र और ज्ञान की स्वतन्त्रता शास्त्र के सामने आ जाने से ज्ञान हो गया हो। ऐसी बात नहीं है किन्तु उस समय ज्ञान की अपनी योग्यता है । उस क्षण जीव अपनी शक्ति से ज्ञानरूप परिणमन करता है और शास्त्र, निमित्त के रूप में विद्यमान है। ज्ञान होना हो, इसलिए शास्त्र को आना ही पड़े - ऐसी बात नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि शास्त्र आया, इसलिए ज्ञान हुआ है। 47. आत्मा के सामान्य ज्ञानस्वभाव का विशेषरूप परिणमन होकर ही ज्ञान होता है । वह ज्ञान, निमित्त के अवलम्बन के बिना और राग के आश्रय के बिना सामान्य ज्ञानस्वभाव के आश्रय से ही होता है। कुम्हार और घड़ा दोनों की स्वतन्त्रता मिट्टी की जिस समय की पर्याय में घड़ा बनने की योग्यता है, उसी समय वह अपने उपादान से ही घड़े के रूप में परिणमती है, और उस समय कुम्हार की उपस्थिति स्वयं उसके कारण से रहती है अथवा नहीं भी रहती, क्योंकि बाद में कुम्हार की उपस्थिति नहीं होते हुए भी मिट्टी में घड़ारूप परिणमन चलता ही रहता है। - जब घड़ा बनता है, तब उस समय कुम्हार आदि नहीं हों ऐसा नहीं हो सकता किन्तु कुम्हार आया, इसलिए मिट्टी की अवस्था J
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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