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________________ प्रकाशकीय (पञ्चमावृत्ति) श्री समयसार आदि परमागमों के गम्भीर रहस्य को स्वानुभवगत करके, श्री तीर्थङ्कर भगवान के शुद्धात्मानुभवप्रधान अध्यात्मशासन को जीवन्त रखनेवाले, आध्यात्मिक सन्त परम कृपालु पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी ने सरल तथा सुगम प्रवचनों द्वारा उनके अनमोल रहस्य मुमुक्षु समाज को समझाये हैं और इस प्रकार इस काल में अध्यात्म रुचि का नवयुग प्रवर्ताकर आपने असाधारण महान उपकार किया है। इस विषम भौतिक युग में सम्पूर्ण भारतवर्ष तथा विदेशों में भी ज्ञान, वैराग्य और भक्तिपूर्ण अध्यात्मविद्या के प्रचार का जो आन्दोलन प्रवर्तित है, वह पूज्य गुरुदेवश्री के चमत्कारी प्रभावना योग का अद्भुत फल है। ऐसे परमोपकारी पूज्य गुरुदेवश्री के अध्यात्मरस भरपूर प्रवचनों के प्रका! करने का अवसर प्राप्त होना भी अपना परम सौभाग्य है। तद्नुसार 'वस्तुविज्ञानसार' नामक पूज्य गुरुदेवश्री के प्रवचनों का सङ्कलन प्रकाशित करते हुए, कल्याणी गुरुवाणी के प्रति अतिभक्तिपूर्ण प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। इस 'वस्तुविज्ञानसार' के प्रवचनकार परमोपकारी पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी शुद्धात्मदृष्टिवन्त, स्वरूपानुभवी, वीतरागी देव-गुरु के परमभक्त, कुमार ब्रह्मचारी, समयसार आदि अनेक गहन अध्यात्म शास्त्रों के पारगामी, स्वानुभवी, भावश्रुतलब्धि के धनी, सतत ज्ञानोपयोगी, वैराग्यमूर्ति, नयाधिराज शुद्धनय की मुख्यतासह सम्यक् अनेकान्तरूप
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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