________________
वस्तुविज्ञानसार
जीव को शुभरागरूप व्यवहार का पक्ष है, उसकी जगह यदि त्रैकालिक स्वभाव की ओर वीर्य का बल लगाया जाए अर्थात् निश्चय का आश्रय करे तो सम्यक्त्वादि धर्म होता है।
शुभराग की प्रवृत्ति पर सम्यग्दर्शन अवलम्बित नहीं है किन्तु वह निश्चयस्वभाव के आश्रित है। यदि जीव, अपने स्वभाव की ओर रुचि नहीं लगाता तो उसके व्यवहार का पक्ष नहीं छूटता और सम्यग्दर्शन नहीं होता क्योंकि सम्यग्दर्शन अन्तरङ्ग स्वभाव की वस्तु है।
कालिक और वर्तमान इन दोनों पहलुओं के ध्यान में आने पर भी जीव त्रैकालिक स्वभाव की रुचि की ओर नहीं झुकता, किन्तु वर्तमान पर्याय की रुचि की ओर उन्मुख होता है। यह स्वभाव है, यह स्वभाव है' इस प्रकार यदि रुचि स्वभाव की ओर झुके तो क्षणिक पर्याय की दृष्टि का अभाव हो जाए, किन्तु त्रिकाली स्वभाव की रुचि में लेने के बदले वर्तमान शुभराग को ही देखता है; इसलिए त्रिकाली ज्ञायकस्वभाव में वीर्य का झुकाव नहीं होता अर्थात् निश्चय का आश्रय नहीं होता और व्यवहार पक्ष नहीं छूटता - यही मिथ्यात्व है। ___ आत्मा के वर्तमान वीर्य को वर्तमान के ही लक्ष्य पर (अवस्था -दृष्टि में) स्थिर करे और त्रैकालिक अन्तरङ्ग स्वभाव की ओर वीर्य को प्रेरित नहीं करे तो विकल्प का अभाव नहीं होता और सम्यग्दर्शन नहीं होता।
प्रत्येक जीव के वर्तमान अवस्था में वीर्य का कार्य तो होता ही रहता है, किन्तु उस वीर्य को कहाँ स्थापित करना चाहिए - यह भान नहीं होने से जीव के व्यवहार का पक्ष नहीं छूटता। 'मैं एक