________________
वस्तुविज्ञानसार
बन्ध की क्रिया हैं, जो कि संसार की उत्पादक क्रिया है। किसी जीव ने अशुभ परिणाम छोड़ दिये और जिनेन्द्रदेव, निर्ग्रन्थगुरु एवं सत्शास्त्र के लक्ष्य से शुभराग किया तथा उसमें धर्म माना तो वह जीव भी बन्धन की ही क्रिया कर रहा है।
अविकारी क्रिया अर्थात् मोक्ष की क्रिया / धर्मक्रिया ।
अविकारी क्रिया का अर्थ है धर्म की क्रिया अथवा मुक्ति की क्रिया। लोग कहते हैं कि क्रिया से धर्म होता है, यह सच है, किन्तु वह क्रिया किसकी और कैसी? क्या वह जड़ की क्रिया है? या चेतन की विकारी क्रिया है या अविकारी? जिसे जड़, विकारी और अविकारी - ऐसा भिन्न-भिन्न तीनों क्रिया के स्वरूप का ही पता नहीं है, वह धर्म की क्रिया कहाँ से करेगा?
मुक्ति की क्रिया में पर के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है और पर की ओर के झुकाव से जो भाव होता है, उसके साथ भी सम्बन्ध नहीं है। मुक्ति की क्रिया में परपदार्थ पर या विकार पर दृष्टि नहीं होती, अपितु पर से और विकार से भिन्न अपने असंयोगी, अविकारी, त्रिकाल स्वभाव पर दृष्टि होती है। विकारी क्रिया भी आत्मा की वर्तमान दशा है और अविकारी क्रिया भी आत्मा की वर्तमान दशा है। - आत्मा की जो वर्तमान दशा, स्वभाव के साथ का एकत्व छोड़कर परलक्ष्य में और पुण्य-पाप में अटक जाती है, वह विकारी क्रिया है, संसार है, मोक्ष की घातक है, सुख को दूर करनेवाली और दुःख देनेवाली है तथा आत्मा की जो वर्तमान दशा परलक्ष्य से हटकर स्वलक्ष्य से अपने कालिक स्वभाव की श्रद्धा-ज्ञान और स्थिरता में टिकी हुई है, वह अविकारी क्रिया है, धर्म है, मोक्ष की उत्पादक है,