SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ANA m व्यवहार १२. व्यवहार नय (जो कि संयोग मात्र को लेकर चलता है)क कहता है कि जीव और देह अवश्य एक हैं १३. जीव से भिन्न इस पुद्गलमय देह का स्तवन करके मुनि व्यवहार से ऐसा मानता है कि मैंने केवली भगवान की स्तुति और वंदना कर ली। १४. वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और रूप तथा संस्थान और संहनन- राग, द्वेष, मोह, मिथ्यात्वादि प्रत्यय तथा कर्म,नो कम - वर्ग,वर्गणा,स्पर्धक, अध्यात्म स्थान, अनुभागस्थान-योगस्थान,बंध स्थान, उदय स्थान और मार्गणा स्थान, स्थिति बंध स्थान, संवलेश स्थान, विशुद्धि स्थान, संयम लब्धि स्थान, जीव स्थान, गुणस्थान ये सब ही पदगुल द्रव्य के संयोग से होने वाले परिणाम है। किंतु व्यवहार नय से तो ये सब जीवके हैं। १५. व्यवहार नय पार्यायार्थिक है अत एव जीव के साथ पुदगल का संयोगहोने से जीवकी औपाधिक अवस्था हो रही है। उसका वर्णन करता है, इसलिए ये वर्णादिक से गुणस्थान पर्यन्त भावों को जीवके कहता है। m NS X
SR No.007137
Book TitleNischay Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharat Pavaiya
PublisherBharat Pavaiya
Publication Year2007
Total Pages32
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy