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निश्चय
मानसिक विकल्पों से तथा वचन और शरीर के संसर्ग से भी रहित वह निश्चय धर्म है ।
८४. धर्म में आत्मा निमित्त है। धर्म में आत्मा महान है । ८५. द्रव्यार्थिक नय की विवक्षा से नित्य है ।
८६. निज शुद्धात्मा का श्रद्धान, ज्ञान और उसमें ही रमण रूप चारित्र की एकता को निश्चय मोक्षमार्ग कहते हैं।
८७. इसमें दर्शन, ज्ञान और चारित्र तीनों आत्माश्रित होते हैं. इसीलिए यह अभेद रत्नत्रय भी कहलाता है ।
८८. निश्चय निर्वत्ति परक है । निश्चय वीतराग दशा है । निश्चय स्वाश्रित है । निश्चय साध्य है । निश्चय परम अवस्था है।
८९. निश्चय नय की दृष्टि से सब संसारी जीव शुद्ध है इसमें कोई भेद नहीं है
स्वभाव परिणति
स्वभाव परिणति ने तो जादू कर दिया. । पर परिणति का विनाश कर दिया || पर परिणति का कुचक्र मिट गया । मोह मिथ्यात्व पूरा पूरा मिट गया || राग द्वेष भाव को दबोच धर दिया | स्वभाव. मुझे सम्यक्त्व की बहार मिल गई । निज भाव से ही ज्ञान कली खिल गई ॥ मानो मैंने सिद्ध पद आज ले लिया । स्वभाव.
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