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ॐ
व्यवहार
७४. व्यवहार से जगत के द्रव्य एक दूसरे से मिलते हैं, एक दूसरे में प्रवेश करते हैं।
७५. व्यवहार मोक्ष मार्ग निश्चय मोक्ष मार्ग का साधन है जो पूर्व में होता है, कारण समयसार ही मोक्ष मार्ग है जो कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र स्वरूप है। शरीर और आत्मा भिन्न भिन्न है, यह भिन्न रत्नत्रयात्मक व्यवहार मोक्ष मार्ग हुआ ।
७६. संसारी आत्मा के साथ तो शरीर का संयोग सम्बन्ध है जो कि व्यवहार नय का विषय है। जब वो व्यवहारदृष्टि में आते हैं तब उन्हें शरीर के संयोग को लक्ष में लेकर आहार ग्रहण करने की आवश्यकता होती है ।
७७. व्यवहार नय तो मुनि और श्रावक के भेद से दोनों प्रकार केही लिंगो को मोक्ष मार्ग मानता है ।
७८. व्यवहार नय से तीनों कालों में इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छवास ये ४ प्राण है ।
७९. आठ प्रकार का ज्ञान और चार प्रकार का दर्शन व्यवहार नय से यह सामान्य जीव का लक्षण है ।
८०. कर्म बंध के होने से यह जीव व्यवहारनय से मूर्तिक है ।
८१. यह आत्मा व्यवहार नय से पुद्गलमय कर्मों के फल रूप सुख और दुःख को भोगता है ।
८२. यह चेतन जीव समुद्र घात अवस्था के सिवाय हमेशा व्यवहार नय की अपेक्षा संकोच और विस्तार के कारण छोटे या बड़े अपने शरीर प्रमाण रहता है ।
८३. प्राणियों पर दया भाव रखना, रत्नत्रय धारण करना और उत्तम क्षमादि दश धर्मों का परिपालन करना ये सब
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