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निश्चय ही करता है। ४१. जैन मत में शुद्ध उपादान करने वाले शुद्ध निश्चय नय
से जीव कर्मों का कर्ता नहीं है। ४२. जीवों का अज्ञान भाव मुख्य (निश्चय) कथन जानने
से दूर होता है। ४३. जो अपने ही आश्रय से हो उसे निश्चय कहते हैं। .
निश्चय को भूतार्थ अर्थात भूतार्थ नाम सत्यार्थ का है भूत अर्थात जो पदार्थ में पाया जावे और अर्थ अर्थात भाव उनको जोप्रकाशित करे तथा अन्य किसी प्रकार की कल्पना न करे उसे भूतार्थ कहते हैं। निश्चय नय आत्म द्रव्य को शरीरादि पर द्रव्यों से भिन्न ही प्रकाशित करता है।
४५. निश्चय नय में पदार्थ एक रूप है अर्थात चैतन्य रस
सम्पन्न,अभेद, नित्य और निर्विकार है। "
४६. जीव को देह से भिन्न शुद्ध-बुद्ध जानने वाला निश्चय
नय है। ४७. शुद्ध पक्ष का उपदेश ही विरल है और उसका पक्ष कभी
नहीं आया। कवचित् कवचित् इसलिए उपकारी है। श्री अमृतचंद्र आचार्य ने शुद्ध नय के ग्रहण का फल मोक्ष जानकर उसका उपदेश प्रघानता से दिया है कि शुद्ध नय भूतार्थ है, सत्यार्थ है इसका आश्रय लेने से
सम्यग्दृष्टि हुआजा सकता है। ४८. जो आत्मा इन तीनों - दर्शन, ज्ञान और चारित्र से
एकाग्र परिणत होता हुआ अन्य कुछ भी न करता है
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