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________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/४७ पूजन क्र.७ आयुकर्म विरहित श्री सिद्धपरमेष्ठी पूजन स्थापना (छंद - कुण्डलिया) आयुकर्म का नाश कर, हुए सिद्ध भगवान। बार-बार पूजन करूँ, पाऊँ पढ़ निर्वाण ॥ पाऊँ पद निर्वाण करूँ आत्मा का चिन्तन । चार प्रकृतियाँ नष्ट करूँ काढूँ भव-बंधन ॥ ज्ञानपूर्वक आश्रय लूँ मैं आत्मधर्म का। अब तो क्षय करना है स्वामी आयुकर्म का॥ ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। ___ (छंद - चौपाई) जन्म-जरादिक रोग मिटाऊँ, श्री सिद्ध प्रभुको नित ध्याऊँ। आयुकर्म चौप्रकृति विनायूँ, सूक्ष्मत्व गुण शीघ्र प्रकायूँ॥ ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.। भवाताप-ज्वर शीघ्र मिटाऊँ, श्री सिद्ध प्रभुको नित ध्याऊँ। आयुकर्म चौप्रकृति विनायूँ, सूक्ष्मत्व गुण शीघ्र प्रकाणूं। ॐ ह्रीं आयुकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं नि.।
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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